बुद्धि सागर गौतम के दोहे
अभिमान
जीवन में अभिमान तुम, कभी न करना भाय।
अभिमानी इस जगत में, चैन कभी ना पाय।
मानव का अभिमान ही, बहुत बड़ा है दोष।
अभिमानी मानव सदा, दे दूजे का दोष।
अहंकार अभिमान है, दोनों एक समान।
मानव जो इसको तजे, मिले उसी को मान।
अभिमानी जो होत है, करें बुरा ही काम।
करता अनहित देश का, सदा बिगाड़े काम।
अभिमान करें किस चीज का, तन है राख समान।
क्षण भर में उड़ जाएगा, सुगना हवा समान।
रचनाकार ✍️ – बुद्धि सागर गौतम।
( मौलिक व स्वरचित रचना )
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