देशभक्ति काव्य लेखन प्रतियोगता हेतु-एक गीत प्रेम वेदना के नाम
मम वेदना का एक अंश,
सम्भाल लो तो जान लूं।
संतप्त मरु दृग नीर बिन्दु,
खंगाल लो तो जान लूं।
मेैं निरा निर्धन जगत का,
एक खोटा द्रव्य हूं।
निज भार के अतिरिक्त ढोता,
श्रमिक मैं अति श्रव्य हूं।
असीम कंटकपूर्ण जंगल पथ मेरा, जिस पर चला,
मेरे पगों का एक शूल,
निकाल लो तो जान लूं।
मम वेदना का…..!
जैसे जलद है जान जाता,
भू की उजली प्यास को।
बिन कहे सुन ले पवन,
फूलों की बुझती सांस को।
हिलते अधर, रुंधती नज़र,निर्वाक कंठ रहे मेरा,
पलकों से छू मेरी व्यथा,
पहचान लो तो जान लूं।
मम वेदना का…..!
ऐसा मिलन तन-मन से हो,
छत का मिलन आंगन से हो।
ऐसे बने सम्बन्ध अपना,
जल का ज्यों जीवन से हो।
जीवन डगर हो सरल ऐसे ,जल में जैसे मीन का,
हँसी में कही कटु बात हँसकर,
टाल दो तो जान लूं।
मम वेदना का…..!