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प्रीत के ऑंगन में

 प्रेम आधारित काव्य प्रतियोगिता हेतु
अंतिम तिथि-20 जनवरी
 
  प्रीत के आँगन में।   
 

शीतल चंचल मधुर चाँदनी

भावों को महकाती है
जब जब देखूँ रूप सुनहरा
हिय में हूक जगाती है। 
 
चंदन सी काया है तेरी
प्रीत भरा है अंग अंग में
मेरा मन बन भ्रमर डोलता
तेरी प्रीत के आँगन में।
 
तेरे नैनों की थिरकन
कितना कुछ कह जाती है।
जब जब देखूँ रूप सुनहरा
हिय में हूक जगाती है।।
 
तेरे कदमों की आहट से
जाने कितने गीत सजे
तेरी मुस्कानों से मन में
अगणित सुर संगीत सजे।
 
तेरे अधरों का कंपन 
बिन कहे बहुत कह जाती है।
जब जब देखूँ रूप सुनहरा
हिय में हूक जगाती है।।
 
जाग रही है रात साथ में
तारों की बारात सजी है
मेरे घर के आँगन में
खुशियों वाली रात सजी है।
 
तुझसे मिलने की चाहत
अंग अंग श्रृंगार सजाती है।
जब जब देखूँ रूप सुनहरा
हिय में हूक जगाती है।।
 
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       13 जनवरी, 2021