देशभक्ति काव्य लेखन प्रतियोगिता हेतु “भारत अपना देश “
भारत अपना देश
भारत अपना देश आज यह सोच न क्यों इठलाएँ
यही हमारी मातृभूमि ले नाम न क्यों इतराएँ ।।
खिले यहीं राणा प्रताप, शिवा- से फूल निराले
आजादी के लिए सर्वदा ही मर-मिटने वाले
तलवारों से खींच गए हैं इतिहासों पर लीकें
चमक रहे अध्याय आज कौंधे नयन सभी के
यह सोच-सोच गौरव से क्यों न दिल में फूल खिलाएँ ।।
यहीं हुए हैं पार्थ, भीम दुर्जेय महाबलशाली
परशुराम, रघुराम, कृष्ण, हनुमान अजीत महिमाली
यहीं हुए भाभा सा जग में विज्ञान क्रांति का नेता
चन्द्रगुप्त, चाणक्य, विश्वविजयी सिकन्दर जेता
सबका दुःख हरता भारत ले सिर अपने विपदाएँ।।
इसी कुक्षी को धन्य कर गया भगत सिंह नरवीर
बोस, कुँवर, आजाद ने खीची जग पर स्वर्ण लकीर
सीच गए निज के आँसू से बापू विश्व महान
लक्ष्मीबाई आर्य नारी की बनी अमर बलिदान
कहता विकीर्ण पाषाण किला सब इनकी अमर कथाएँ।।
वर्षों तक जलती रही यहाँ पर जौहर की ज्वालाएँ
लड़ते थे क्षत्रिय समूह जहाँ पहन मुंड मालाएँ
और जहाँ पर जले ज्ञान के दीप आर्य ऋषियों के
चमक उठे दिक् प्रान्त अँधेरे छंटे जो थे सदियों के
वरुणा तट पर शास्ताने गूँथी करुण मालाएँ।।
युग-युग में कई नई कलाएँ बिखरी इसी अवनि पर
हुए यहीं वाल्मीकि, व्यास, भृगु, आजीविक तीर्थकर
इसी भूमि को सींच हरी करता नगराज हिमालय
चरण धो रहा इसी अवनि का यह महान वरुणालय
जहाँ प्रेम की बही नदी हैं प्रेमभरी सिकतायें ।।
अमर हमारा अग्निदेश यह सदा रहेगा जलता
वीरों, गुणियों, बड़ेदानियों के कर्मों से पलता
सदा लुटाता रहा, रहेगा सबको अनुपम निधियाँ
विश्वधर्म की मान दण्डिनी इसकी रही है विधियाँ
देव यहाँ पर हैं आने को कई बार ललचाए।।
डॉ. अमरकांत कुमर