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मैं

*।।मैं।।*
मैं चिर नवीन मैं अति प्राचीन
मैं खुशमिज़ाज मैं ग़मशीन

मुझमें यह संसार समाया हैं
मुझसें मोह मोक्ष माया हैं

मैं अस्तित्व हुँ , मैं व्यक्तित्व हुँ
मैं लघुत्व और मैं प्रभुत्व हुँ

मैं नवनीत हुँ, मैं अवधूत हुँ
मैं वर्तमान भविष्य औऱ भूत हुँ

मैं आशा हुँ, मैं ही निराशा हुँ
मैं ही दिशा, दशा, इच्छा हुँ

मैं निःशब्द हुँ , मैं वाचाल हुँ
मैं ही देव् हुँ , दैत्य वैताल हुँ

मैं सत्य सनातन शिव धर्म हुँ
मैं ही कर्म ,मर्म और शर्म हुँ

मैं प्रारब्ध हूँ , मैं करबद्ध हुँ
मैं दुर्लभ और मैं उपलब्ध हुँ

मैं लंठ हुँ और मै ही संत हुँ
मैं आग़ाज़ और मैं ही अंत हुँ

मैं ही लय हुँ, मैं ही भय हुँ
मैं ही क्षय हुँ औऱ मैं शय हुँ

रहूँगा जब तक सृष्टि रहेगी
क्योंकि मैं तो आख़िर “मैं” हुँ ।।
©बिमल तिवारी “आत्मबोध”
   देवरिया उत्तर प्रदेश