01 आ गया वसंत, 02 बसंत बहार, 03 ऋतु परिवर्तन { प्रेम काव्य लेखन प्रतियोगिता }
01 आ गया वसंत
आ गया वसंत ! देखो फिर छा गया वसंत !!
अब होगा कलरव चहूँ – दिशा में ,
वन – वन खिल जायेंगे फूल |
जीवित होंगे घर-आँगन- वन निद्रित शैल अलसेंगे |
दिवामणि के दिव्य प्रताप से , नव – कलिका नव किसलय दल
मदिर – मदिर मुस्कायेंगे ||
दिशा – दिशा में फिर सौरभ के धूमिल मेघ उठेंगे |
अब रसाल की आम्र मंजरी में, कोयल के मधुर सुर कूजेंगे ||
डाल – डाल औ पात – पात में होगा नव जीवन का सृजन ,
जब नव नीड़ में युगल द्विज का फिर हो जायेगा मिलन ||
वसुधा के कण – कण गूंजेगा नव जीवन का संगीत |
जब पग–पग विस्तारित हरियल दूर्वा भरेगी, ॐ –ओमकार का स्वर ||
मधुमास की मादकता में समीरण हो जायेगा अधीर ,
सानन्द रोएगी हिमानी कभी चुम्बन से जाएगी सिंहर |
आ गया वसंत ! देखो फिर छा गया वसंत !!
02 ऋतु परिवर्तन
पूस शिशिर की जटिल राह से , प्रकृति ने ली अंगड़ाई।
सर्द रात से सबको उसने ,आज है राहत दिलवाई।
बसंत बहार की चादर ओढ़े , ऋतुओं की रानी शरमाई।
बासंती पुष्प की रंगत उसने ,प्रकृति के कण-कण में फैलाई।
देख परिवर्तन की अद्भुत लीला, मानव जाति हरषाई।
विगत क्षणों की यादें लेकर , ऐसी सुघड़ी आयी
वसंतोत्सव की अद्भुत बेला, प्रकृति में पुनः बन आई।
स्वागत करने जन-मानस का, पीली बहार है छायी ,
झंकृत हृदय के तार हैं गाते ,स्वागत स्वागत स्वर्णागत।
स्वागत की सु-मधुर बेला में ,लगते सभी जाने पहिचाने ,
विधि की कैसी अद्भुत लीला ,परिवर्तन हुआ साकार।
परिवर्तन की शुभ बेला ने , दिया जग को नव-संस्कार ।
धन्यवाद ऋतुओं की रानी का ,आतिथ्य किया स्वीकार।
03 बसंत बहार
आयो सखी ऋतु बसंत राज !
छेड़ो ‘राग बहार’ |
मिल गाओ ‘मियां मल्हार’ ,
जागी रस की फुहार |
सघन -वन- वृक्ष की ऊँची डाल ,
खिल गयो ‘लाल बुरांश’ |
ख़ुशी से फूली ‘पिली सरसों ‘
सृष्टि को दिया नवाकार |
डाल -डाल के अंग-अंग में
नव कोंपल का संचार |
‘गुलाल’ की सौंधी महक से ,
आओ करें अवनि का श्रृंगार ||