1

फरहत परविन की कविता – ‘सोंधी सी मुस्‍कान’

गहन तिमिर के शांत कक्ष में

सुलगाते ही एक चिंगारी

हर लेती सारे अवसादों को

रश्मिरथी ये तीव्र उजियारी

सहेज सब कुछ अंतर्मन में

रही बाँधती जिसे निष्काम

बिना बोले ही खोलती हजारों गिरहें

एक सोंधी सी मुस्कान।

चिकटे-चपटे बर्तन में

पड़ते ही सिक्के की ठन-ठन

क्षुधा-दग्ध मुक्ति मिलते ही

तृप्त वृद्धा-भिक्षुणी के चेहरे पे देखी

एक सोंधी सी मुस्कान।

पैरों में पड़ते हैं बिवाई

दिवा-निशा की कड़ी मेहनत से

ठिठुर जाड़े की शीतल पवन में

खेतों में फूटते ही

गेहूँ की नरम-सुनहरी बालियाँ

जर्जर किसान के चेहरे पे देखी

एक सोंधी सी मुस्कान।

जीवन-मरण की यादृच्छिकता में

युद्ध-विराम से घर लौटे

देश-प्रहरी को अपलक निहारती

नव ब्याहता वनिता के चेहरे पे देखी

एक सोंधी सी मुस्कान।

क्षण-क्षण सहती असीम प्रसव-पीड़ा

आकुलता भरे हृदय से

लाख दुआएँ करती रहती

सुन नवजात की पहली किलकारी

सौम्या जननी के चेहरे पे देखी

एक सोंधी सी मुस्कान।

मधुमासी उल्लास लिये

अपार समर्पित स्नेह-निर्झर में

प्रेम-निवेदन करते ही स्वीकृत

लिए लालिमा प्रेयसी के चेहरे पे देखी

एक सोंधी सी मुस्कान।

मीलों तक पथबाधा सहते

अंतिम लक्ष्य तक ज्यों पहुँचते

छूते ही रक्तिम पट्टी को

धावक के गौरवपूर्ण चेहरे पे देखी

एक सोंधी सी मुस्कान।

परिवार-समाज की सुनती ताना

पढ़कर तुमको क्या है बन जाना?

बादलों से ऊपर उड़कर

देख क्षितिज से अपनी धरा को

दृढ़ संकल्पी महिला पायलट के चेहरे पे देखी

एक सोंधी सी मुस्कान।

दे उड़ान हौसलों को

कठिन लक्ष्य तक पहुँचा देती है

पृथक कर समस्त चिंता-पीड़ा से

जो हर्ष के अपार द्वार खोल जाती है

है कितनी ही प्यारी

ये सोंधी सी मुस्कान।

संपर्क : फरहत परविन, शोधार्थी, (हिंदी), बर्दवान विश्वविद्यालय, पूर्वी बर्दवान, पश्चिम बंगाल, ई-मेल- [email protected]