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वह बेचती थी गुटका भग —3

सालों से चलता सिलसिला मेरे
भी भावो का आकर्षण अधेड़ उम्र महिला की ओर बढ़ चला जो बेचती थी गुटका।।
मैने भी एक दिन उस अधेड़ उम्र
औरत जो मेरे प्रतिदिन की दिन
चर्या की आवश्यक थी हिस्सा ।।
अनिवार्यता प्रति दिन का
सत्य सत्यार्थ थी किस्सा ।।
किया सवाल माई तू जाड़ा गर्मी
बरसात पाला चाहे कौनो हो
हाल हालात गुमटी के दुकान तोहार
मंदिर मस्जिद गुरुद्वार।।
काहे तोहरे लईका बच्चे नाही का
तोहार पति परमेश्वर करतेन
काहे ये उम्र में जान देत हऊ माई।।
उस अधेड़ उम्र औरत की आंख
डबडबा गई आंखों में आंसुओ का
तूफान जो नही ले रहा था थमने
का नाम ।।
हमे अपनी गलती का हुआ एहसास
लगा मेरे ही कारण इस अधेड़ उम्र
औरत को ना जाने किस पीड़ा का
दर्द अनुभव आघात।।
मैन झट माफी मांगी बोला माई
गलती हमार ना करके चाही कौनो
अइसन सवाल ।।
पथराई मुरझाई नज़रो मायूसी
अंधकार के निराश मन से
उस अधेड़ उम्र की औरत का
जबाब।।
बोली बाबू दोष कौन तोहार
जब भगवाने दिहले हमार जिनगी
बिगाड़ पूछते बाढ़ त ल बाबू तोहू
जान ।।
हम गाय घाट गांव के बाछी बेटी
गोपालापुर में माई बाबू बड़े खुशी
से करेन बियाह ।।
हमरे दुई बेटा एक बेटी पति
परमेश्वर भरा पूरा परिवार।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश