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सूर्य और देव

पवन पुत्र शिष्य पुत्र शनि
दुःख भय भंजक न्याय दंड
के दाता सारे सूरज संग
भाग्य दुर्भाग्य के दाता।।
धर्म शास्त्रों में देवता
विज्ञान वैज्ञानिक की
शोध कल्पना परिकल्पना
अविनि परिक्रमा करती
दिवस माह वर्ष युग काल
की गति चाल का निर्माता।।
युग ब्रह्मांड त्रिभुवन का
परम् प्रकाश व्यवहार विनम्र
प्रकृति प्रबृत्ति का निर्धाता।।
कहते सूरज पृथ्वी से
प्रातः तेरे कण कण को
नव उद्देश्य चेतना से जगाता।।
नमस्कार करता प्राणी
जल का अर्घ्य चढ़ाता
मेरे ही स्पर्श सानिध्य में
योगी मुनि युगों युगों की
साध्य साधना से इष्ट देव
को पाता।।
मेरे आने पर पंक्षी 
कोलाहल कर स्वागत करते
कृषक मेरी किरणों संग
हरियाली खुशहाली का
विश्वास जगाता।।
श्रम श्रमिक को आवाज़
मैँ देता आओ मिलकर
श्रम से सृंगार करे
कर्मनेवाधिकारस्य को
आत्म साथ किये नए
सुबह के संदेशों का हो
जय जयकार अंगीकार।।