दिल से बड़ा कोई ताज नहीं, ,,,,,,,,,,,,
क्यों आ के किनारे पर डूबी
ये कश्ती हमको याद नहीं
बस दर्दे मोहब्बत है दिल में
और इसके सिवा कुछ याद नहीं
क्या जाने दिल बेचारा ये
हार जीत क्या होती है
पल -पल जल के हारा क्यों
ये दिल शमा पर याद नहीं
जाने सकूँ क्यों मिलता है
इस दिल को अब अंगारों पर
क्यों आगोश में कातिल की सोया
अब घायल दिल को याद नहीं
ये तन्हा-तन्हा रोता है
करता ये फरियाद नहीं
जिस दिल से मोहब्बत कर बैठा
उस दिल से बड़ा कोई ताज नहीं
सुशील सरना /21-2-21
मौलिक एवं अप्रकाशित