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नारी ईश्वर की अनमोल कृति

नारी, ईश्वर की अनमोल कृति
देवी, सती ना जाने किस किस रूप में है बसी,
संगीत के सात स्वरों सी मधुरिम है इसकी हंसी
इसकी बुलंदियों का प्रकाश सम है रवि – शशि
इसके सानिध्य से ही मिलता है उल्लास
गीता,रामायण जैसे महान ग्रंथो में भी है इसका वास
खुशहाली है रहती सदा इसके आस पास
पराए घर को अपनाने की है इसमें खूबी,
घर आंगन को महकाने में सदा रहे डूबी
बस अपनों के सपनों में रहती है रची बसी
रिश्ते की हर कड़ी इसके प्रेम से है भरी
स्वार्थ से परे,सकारात्मकता की प्रतिमूर्ति
जो हर हाल में करती है सबकी आवश्यकताओं की पूर्ति
माथे पर सेवा रूपी बिंदी
मांग में त्याग और समर्पण का सिंदूर
हाथों में प्यार के कंगन
गले में सात वचनों का मंगलसूत्र
और होठों पर खुशी की लालिमा लिए
जब घर के मंदिर में करती है प्रवेश,
तब ईश्वर भी करते है उस पर कृपा विशेष,
मा अन्नपूर्णा का है प्रतीक,
मा लक्ष्मी का है रूप
जो हर लेती है परिवार के दुखो कि धूप
शांति और विश्वास का है स्वरूप
असीम ऊर्जा की स्वामिनी है नारी
जो जीवन की सच्चाइयों से कभी ना हारी
इसका एक प्रयास सभी रुकावटो पर है भारी
ऐसी विशिष्ट प्रतिभाओं की धनी स्त्री को हमारा नमन
इसकी उपलब्धियों का कद कभी घटे ना
ईश्वर से है प्रार्थना
नारी से गुण कौशल सभी को देना