वसंतोत्सव काव्य प्रतियोगिता हेतु – ‘देखा वसंत में !’
देखा वसंत में
फूले सरसों से खेत चमकते
फले हरे गेहूं लहराते
कू-कू कोयल कूजते
पछुवा को डालियों से करते दोल विलास
देखा वसंत में !
जहाँ तहाँ कटते
उलझे निकालते
और झुंड में लूटते
पतंग उड़ाते, डोर काटते
देखा वसंत में !
रंगों का खेल खेलते
पिचकारी लिए दौड़ते
परस्पर रंग उड़ेलते
छोड़ गिले शिकवे गले लगाते-मिलते
देखा वसंत में !
लदी लताएँ बेर से झूलते
पतझड़ के पत्ते गिरते
किंशुक खिलते
विरह मिलन की बेला आते
प्रातः दीप्त पूर्व दिशा सूर्य स्वर्ण से उगते |
देखा वसंत में ||
बागों में आम्र मंजरी आते
सुमन वन में बहार लाते
झोंके हवा धूल संग खेलते
मधुमास सुरभित होते
देखा वसंत में !
रूह जगाते
बिसरी यादें स्मरण कराते
नयी उमंग उमड़ते
श्रृंगार रस बढाते
देखा वसंत में !