औरत की इच्छा
|
औरत की इच्छा
————–
चट्टानों के बीच कैद एक शीतल सी धारा जल की |
बाहर आने को व्याकुल है,व्यथा कहे किससे मंन की|
ऊँचा मस्तक किये खड़े हैं , अहंकार के मद में चूर |
ज्वालामुखी धधकता मन में, व्यथा सुनेंगे क्या ये क्रूर |
ये पाषाण मुझे समझे हैं , मैं शीतल सी सलिला हूँ |
क़ैद किये हैं मुझे युगों से, जाना केवल अबला हूँ |
अबला जिसको समझ रहे हैं,परम शक्ति है उसका नाम |
नादानी में भूल रहे हैं, होगा इसका क्या परिणाम |
जितने महारथी जन्में हैं , शूरवीर ,योद्धा ,अभिराम|
सबने पहले चलना सीखा ,अबला के आँचल को थाम|
अति बलवान समझते खुद को ,अहंकार दिन -दूना है
तूने दबा रखा धरती को , तुझे चरण अब छूना है|
डॉ. ज्योति मिश्रा
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)