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औरत की इच्छा

 
                       औरत की इच्छा 
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चट्टानों के बीच कैद एक शीतल सी धारा जल की |
बाहर आने को व्याकुल है,व्यथा कहे किससे मंन की| 
 
ऊँचा मस्तक किये खड़े हैं , अहंकार के मद में चूर |
ज्वालामुखी धधकता मन में, व्यथा सुनेंगे क्या ये क्रूर |
 
ये पाषाण मुझे समझे हैं , मैं शीतल सी सलिला हूँ |
क़ैद किये हैं मुझे युगों से, जाना केवल अबला हूँ |
 
अबला जिसको समझ रहे हैं,परम शक्ति है उसका नाम |
नादानी में भूल रहे हैं,  होगा इसका क्या परिणाम |            
                                       
जितने महारथी जन्में हैं , शूरवीर ,योद्धा ,अभिराम| 
सबने पहले चलना सीखा ,अबला के आँचल को थाम|
 
अति बलवान समझते खुद को ,अहंकार दिन -दूना है 
तूने दबा रखा धरती को , तुझे चरण अब छूना है|
 
डॉ. ज्योति मिश्रा 
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)