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जब दहलीज पर आऊँ

जब दहलीज पर आऊँ 

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<span;>जब हम रवि सा दिन भर संतप्त हो,
<span;>त्रसित संध्या की दहलीज पर आऊँ,
<span;>तो श्रम बिन्दु पर ठंडी बयार सा बन,
<span;>प्रिये! तुम मेरे रोम रोम में  बस जाना।1।

<span;>        मिलन की सुरमयी बेला पर आपलक,
<span;>        देखूँ औ तुम्हारी शीतलता को समा लूॅ,
<span;>        झिलमिल सितारों बीच अपना मुखडा,
<span;>        रख चौखट पे खडी हो मुझको रिझाना।2।

<span;>कनखियों से नीलिमा की झीनी चुनरी में,
<span;>हे निशा तेरा जो नयनाभिराम बदन देख,
<span;>सुध बुध खो भूलूँ ,तेरे वो आलिंगन गीत,
<span;>तो तुम प्यार से मेरे कान में फुसफुसाना।3।

<span;>ओमप्रकाश गुप्ता बैलाडिला
<span;>18:12:2020