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अपना कौन?

अपना कौन ?
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आज ही 10 बजे से बी.एड का पेपर है और साथ में नन्हे-नन्हे दो बच्चे और बुआ जी ने घर छोड़ने का अल्टीमेटम दे दिया कि “अभी घर छोड़कर जाओ ,चाहे जहाँ जाओ ।”
बुआ जी शमिता के पति की सगी बुआ थीं । शमिता उनके पास बी.एड करने के लिए आई हुई थी और उन्होंने उसे एक कमरा दे दिया था ।शमिता के दो छोटे बच्चे भी थे एक
तीन साल के करीब का और दूसरा लगभग छः माह का । दोनों बच्चों को संभालना ,अपनी बी.एड की पढ़़ाई करना और साथ में ही बुआ जी की भी तीमारदारी करना । बुआ जी पुराने सोच वाली संकीर्ण सोच वाली महिला थीं । उनके निगाह में पढ़ाई से ज्यादा अहमियत थी उनकी तीमारदारी । बस तीमारदारी में कमी देखी और आगबबूला हो उठीं ।
“बुआ जी आज ही मेरा पेपर है ,पेपर देने के बाद मैं खुद चली जाऊँगी,मुझे तो जाना ही है ।”
शमिता ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा ।
“नहीं जो कह दिया सो कह दिया अभी मेरे घर से निकल जा । चाहे जहाँ जा मुझे कोई मतलव नहीं ।बड़ी आई कलेक्टर बनने वाली ।”
बुआ जी रौद्ररूप धारण कर चुकी थीं ।
“अगर नहीं निकली तो समान उठाकर फेंक दूँगी ।”और फिर उन्होने शमिता का सारा सामान घर के बाहर करवा दिया ।
शमिता रोते हुए दोनों बच्चों को लेकर घर से बाहर खड़ी थी ,उसे कुछ समझ नहीँ आ रहा था कि क्या करे ,क्या ना करे ? अचानक उसे लगा की अभी तो पास के मन्दिर में जाकर ठहर जाये फिर सोचती है कि क्या करना है ?
उसने रिक्शा किया और उसमें अपना सामान रखकर मन्दिर पहुँच गयी । वहाँ उसने पुजारी जी से एक दिन ठहरने की अनुमति माँगी । पुजारी जी ने जब सारी बात सुनी तो तुरन्त बच्चों के खाने पीने की व्यवस्था की और शमिता से बोले , “बेटा पहले अपनी परीक्षा दे आओ फिर बात होगी । बच्चों की चिंता मत करो उन्हें मैं संभाल लूँगा ।”
शमिता एक गैर के हाथों में अपने दोनों बच्चों को सौंपकर परीक्षा देने चली गयी । वहाँ वह लगभग आधे घंटे लेट हो गयी थी किन्तु परीक्षा देने की अनुमति मिल ही गयी ।
“आप इतना लेट कैसे ?”शिक्षिका ने पूछा।
“कुछ नहीं मैम अभी मुझे पेपर देने दीजिए बाद में बताऊँगी ।”शमिता की आवाज़ भर्राई हुई थी। शिक्षिका ने भी आगे कुछ नहीं पूछा पर वे समझ गयीं थीं कि मामला गंभीर है।
किसी तरह परीक्षा देने के बाद वह सीधे मन्दिर आयी । वहाँ पुजारी जी ने बच्चों को दूध पिलाकर सुला दिया था तथा शमिता के लिए भी भोजन बनवाकर रखा था ।
” बेटा पहले कुछ खा लो फिर कुछ बात होगी।”पुजारी जी बोले ।
        शमिता चुपचाप खाना खा रही थी और आँखों से आँसू बहने को बेताब हो रहे थे । आखिर अपना कौन है ?

डॉ.सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली