फिर आई सर्दी
लघुकथा….
फिर आई सर्दीO
सर्द ऋतु आते ही रजाई की याद आती है एक वो ही है जो
ठंड में भी गर्मी का अहसास दिलाती है ।
कभी कभी लगता है कि
जिन लोगो के पाससिर छुपाने को छत नही हैजिनके पास पहनने को कपड़े नही है कड़ाके की ठंड में ओढ़ने को रजाई नही है
वो अपना गुजर बसर कैसे करते होंगे यह सोचकर ही
ठंडी आह निकलने लगती है ।
एक दिन ठंड शुरू होते ही
पिताजी कहने लगे आज गजक लाएंगे ठंड में गजक खाने का
अलग ही मजा है मेने कहा पिताजी आप से कुछ कहना है
वे बोले हाँ कहो क्या बात है
पिताजी आज आपगजक की जगह कुछ और ला सकते है
हाँ हाँ कहो ,क्या लाना है
पिताजी यहां से थोड़ी दूर एक झोपड़ी है वहां पर एक अम्मा ठंड से ठिठुर रही है उनके लिए एक रजाई ला दो मुझे गजक नही चाहिए मेरी बात सुनकर
माँ की आँखों से आँसू निकल आए पिताजी ने कहा अरे वाह !
अब तो आप समझने भी लगे हो
आज रजाई भी आएगी और गजक भी चलो तुम्हारे हाथों से
अम्माजी को देनाझोपड़ी के सामने गाड़ी रुकी वह बाहर आ गई यह लो अम्मा रजाई और मिठाई अम्मा ने अतिथि के आगे
झोली फैला दी मेरे बेटों ने मुझे घर से निकाल दिया और इस छोटी सीबेटी ने मुझे ठंड से बचा लिया ।
……
अनिल गुप्ता
कोतवाली रोड़ उज्जैन