छात्रा मुमताज़ जहाँ की लघुकथा “सुंदर नगरी में पानी कम”
सुंदरवन नाम के गाँव में एक लड़का रहता था जिसका नाम रघु था। रघु अक्सर नहाने ने वक़्त नल को खुला छोड़कर भाग जाता था। इसी तरह हाथ धुलने के बाद भी नल को खुला छोड़ देता था। उसकी माँ भी इस आदत से बड़ी परेशान थी। उन्होंनो रघु को बार- बार मना किया लेकिन वो नहीं माना। यहाँ तक की जब रघु नल से पानी पीता उसको भी खोल कर चला जाता। उसके पड़ोसी भी उसे बार- बार मना करते लेकिन वो नहीं मानता। कभी कभी तो वो किसी का बंद नल देखता तो उसे भी चालू करके चला जाता। रघु बहुत ज्यादा पानी व्यर्थ बहता था। फिर धीरे- धीरे सुन्दर नगरी में पानी की बहुत कमी हो गयी। रघु बहुत दिनों तक नहा नहीं पा रहा था। उसकी छोटी बहन बहुत प्यासी थी। रघु बहुत दूर दूसरें गाँव से पानी भरकर ला रहा था। लाते वक़्त पानी की एक – एक बूंद छलक कर गिर जा रही थी। जब रघु घर पहुंचा तो उसकी बाल्टी में बस आधा पानी ही बचा था। तब वो बहुत परेशान हुआ और बोला मैं इतनी मेहनत से पानी भरकर लाया और आधा पानी तो लाने में छलक कर गिर गया। तब उसको अपनी गलती का एहसास हुआ। माँ ने भी उसको समझाया कि तुम पानी को बर्बाद न करके पानी बचाने वाले रघु बनो। अब रघु जहां भी खुला नल पाता उसे बंद कर देता। जो पानी पाइप से निकलर घर के बाहर जाता रघु उसे भी बाल्टियों में इकठ्ठा करके क्यारियों में डाल देता। अब रघु के घर में तरह- तरह के फूल निकल रहे थे। अब रघु पूरी तरह से बदला गया और सुन्दर नगरी में पानी की कमी भी नहीं हुई।
इसी लिये कहते हैं, जल ही जीवन है।
*जल को बचाओ,कल को बेहतर बनाओ*