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श्रेष्ठ इक्यावन कविताएँ : हिन्दी कविता का वैश्विक प्रतिबिम्ब – डॉ सम्राट् सुधा

भारत -रत्न , पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस पर गत वर्ष आयोजित अंतरराष्ट्रीय अटल काव्य- लेखन प्रतियोगिता में चयनित 51 कविताओं का संग्रह ‘श्रेष्ठ इक्यावन कविताएं’ इसी माह प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह की सभी कविताएं अटल जी पर नहीं हैं, परन्तु भारतीयता और भारतीय मूल्यों के उनके विचारों का ही ये सभी कविताएं उत्कृष्ट प्रतिबिंब हैं।

समीक्षा से पूर्व यह बता देना समीचीन होगा कि ऊपर्युक्त प्रतियोगिता का आयोजन सृजन आस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई-पत्रिका द्वारा किया गया था। उसमें प्राप्त लगभग 1500 कविताओं में से चयनित ये 51 कविताएं हैं, जिनका प्रकाशन सिक्किम विश्वविद्यालय की उद्यानिकी विभाग की असिस्टेन्ट प्रोफेसर डॉ. सुजाता उपाध्याय और प्रकाशन संस्थान न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन के वित्तीय सहयोग से सम्भव हुआ और इसमें प्रतियोगियों से प्रतिभाग से लेकर पुस्तक दिये जाने तक कोई धनराशि नहीं ली गयी।

इस काव्य -संग्रह की कविता ‘ पानी’ में कवयित्री डॉ. स्मृति आंनद समाज में व्याप्त बाज़ारवाद एवं क्रूरता पर करारी चोट करती हैं-
“काले घेरों में कैद
उन आँखों में
तुम्हारी वेदना के लिए
तब न होगा पानी
क्योंकि वह मर चुकी होगी
सदियों पहले
उसकी हो चुकी होगी हत्या।”

प्रभु श्रीराम जैसा नहीं बन पाने की दशा में उन-सा तनिक ही बन जाने का सन्देश देती है ऋषि देव तिवारी की रचना ‘ तुम राम नहीं बन सकते तो’-
“निंदित कर्मों के बीच फंसे
सत्कर्मों के अभिराम बनो
तुम राम नहीं बन सकते तो
कण के एक भाग-सा राम बनो !”

देश की अस्मिता एवं प्रकृति को उभारती है अजय कुमार पाण्डेय की रचना ‘ देश।’ एक अंश द्रष्टव्य है –
“देश नहीं होता केवल
राजमार्ग से गांवों तक
देश नहीं बनता है केवल
अट्टालिकाओं की छांवों तक।”

देश की पुरातम महिमा को प्रतिष्ठित करने के स्वर मनीषी मित्तल की कविता ‘ भाषा के भगवान्’ में दृष्टिगोचर होते हैं –
“कर प्रयास भारत को फिर से
सोने की चिड़िया बनाना है
अखंड भारत का कर निर्माण
राम राज्य फिर से लाना है ।”

कोरोनकाल में अपने घर लौटते व्यक्ति की मनोदशा को स्वर देती है इन पंक्तियों के लेखक की कविता ‘ कालचक्र के माथे पर।’ ये अंश द्रष्टव्य हैं-
“मैंने उससे दुखड़ा पूछा
आंखें उसकी उबल गयीं
भीतर की जिज्ञासा मेरी
मरु बनी और सिमट गयी
मैंने कामकाज का पूछा
गला उसका रुँध गया
बिना कहे वो सारा कहकर
कहना था जो चला गया !”

संग्रह में सम्मति के रूप में विश्व हिन्दी सचिवालय, मॉरीशस के महासचिव प्रोफेसर विनोद कुमार मिश्र के कविता एवं कवि के संदर्भ में विचार पठनीय हैं।
संग्रह की सभी कविताएं काव्यात्मक मानक पर कितनी उपयुक्त हैं ,इससे अधिक महत्त्व इस बात का है कि संग्रह का प्रकाशन बेल्लारी ( कर्नाटक ) के एक फाउंडेशन ने किया है। इस संग्रह में हिन्दी भाषी क्षेत्रों के अतिरिक्त अहिन्दी भाषी ही नहीं , विदेशों में भी हिन्दी में रचना कर रहे रचनाकारों की रचनाएं हैं।इस दृष्टि से हिन्दी के देशीय एवं वैश्विक रचनाकर्म को समझने का यह संग्रह एक माध्यम है। इसी रूप में काव्य – संग्रह ‘श्रेष्ठ इक्यावन कविताएं’ पढ़ा व समझा जाएगा , ऐसी आशा है !

■ समीक्षित कृति : श्रेष्ठ इक्यावन कविताएँ
■ सम्पादक : डॉ. शैलेश शुक्ला
■ प्रकाशक : न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन, बेल्लारी ( कर्नाटक )।
■ मूल्य : ₹ 251
■ समीक्षक : डॉ. सम्राट् सुधा