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रज्जो /RAJJO

                        रज्जो

 रात के दस बज रहे होंगे। कॉलनी के गेट से होकर आ रही मिलिट्री हॉस्पिटल की वैन देखकर हैरान रह गयी | इस समय कौन सी इमरजेंसी है ? अजीत को बुलाने जैसे ही मुडी , तब तक वैन हमारे क्वार्टर के सामने आ चुकी थी।

‘मास्टरनी, मास्टर जी को बुलाइए ज़रा ‘ तिवारी की आवाज।

वैन का सायरन सुनकर तब तक अजीत भी  दरवाजे तक पहुंच चुका था। तिवारी से बात करते वक्त अजित के चेहरे पर दिखी घबराहट ने दिल की धड़कन और बढ़ा दी ।

‘दुर्गा प्रसाद की बीवी अस्पताल में है,तुम जल्दी तैयार हो जाओ |’ अजित ने कहा |

क्या उसकी डेलिवेरी हो गयी ?’ मैंने खुशी-खुशी पूछा |

‘ नहीं उसका एक्सीडेंट हो गया है | केरोसीन से शरीर पूरा जल गया है  | बचने की कोई उम्मीद नहीं | वह तुम से मिलना चाहती है |’ अजी उसी रौ में बताता  जा रहा था ,मैं कुछ बता  नहीं पायी , वहीँ कि वहीँ जड़ होकर खडी रही | कब वान पर चढी ,कब हम अस्पताल पहुंचे ,होश ही नहीं रहा |      

रज्जो… रजवंती… कुलवंदसिंह कॉलोनी के नए क्वार्टर में मेरी मदद के लिए आयी थी वह । लान्स नायिक दुर्गा प्रसाद की पत्नी। शादी के बाद जब मैं पटियाला पहुंची तो ऐसा लग रहा था  जैसे मेरी जड़ें ही उखड़ गई हों। कुलवंद सिंह कॉलोनी के 25 क्वार्टरों में एक में भी कोई मलयाली परिवार नहीं था । एकमात्र सांत्वना थी अजी का साथ  और प्यार | रजवंती, जिसे सब रज्जो बुलाती थी, मास्टरजी की पत्नी को गृहकार्य में मदद करने के लिए आयी थी ।  गेहूँवा रंग, रूखे – सूखे बाल ,गोल-गोल सुडौल गाल और पान के दाग भरे दांत …और सबसे आकर्षक थी उसकी वे बड़ी-बड़ी आँखें हर चीज़ को उत्सुकता से देखती थी | जब वह अपने गंदे दांतों को दिखाकर  हंसती थी , तो लगता था कि उसकी  आंखें भी हंसने लगती हैं ।

नयी जगह और नए परिवेश से परिचित होने में  रज्जो ने ही मेरी मदद की थी । हिंदी में एम .ए किया है तो क्या हुआ , स्थानीय भाषा के बिना बाजार जाना बहुत मुश्किल था । अपने व्यस्त काम  के दौरान अजी हमेशा मेरे  साथ आ भी नहीं पाते थे। वहीं पर रज्जो का साथ काम आया | उसके साथ मैंने यात्रा करना सीखा, बाज़ार जाकर चीज़ें खरीदना सीखा  और वहां के निवासियों के साथ हिल-मिलकर रहना भी सीखा । इसके साथ मुझे एक नाम भी मिला ‘मास्टरनी’ ।     

इसी बीच अनपढ़ रज्जो को हिंदी पढ़ाने का जिम्मा उठाया था मैंने  । सिर्फ एक टाइम पास के लिए शुरू किया था  ,पर  इसने मेरी जिंदगी ही बदल दी। रज्जो के बाद श्रीरामनगर के  सिपाहियों की पत्नियां एक-एक कर पढ़ने आने लगीं । कुछ   तो अपने बच्चों को भी साथ ले आयी  तो  कुछ   बूढ़ी माताओं को |  बुजुर्गों के लिए  साक्षरता क्लास  और बच्चों के लिए ट्यूशन … मेरे  अध्यापन  करियर की शुरुआत वहीँ पर हुई | पाँच साल से लेकर पचपन साल  की उम्र तक के शिष्य बने | रज्जो सबकी मुखिया थी । अपने गाँव  से इतनी दूर आकर जो अजनबीपन और अलगाव का बोध दिल में उग आया था वह धीरे-धीरे बदलने लगा । मैं वहां पूरी तरह रम गयी  । मेरे  इस बदलाव से सबसे बड़ी  राहत अजी को ही मिली थी , अब तो रोज़ उन्हें मेरी शिकायत सुननी नहीं पड़ती  थी | मज़ाक –मज़ाक में उनके दोस्त भी कहा करते थे , ‘ मास्टरजी ,अब तो आप से भी पोपुलर हो गयी है  मास्टरनी |  आर्मी वूमेन वेलफेयर एसोसिएशन के सहयोग से महिलाओं के लिए कई काम करने में मुझे सक्षम बनाया था रज्जो के लिए शुरू की गयी साक्षरता क्लास  |      

इस बीच, इस एहसास ने कि हमारे जीवन में एक नया मेहमान आ रहा है, जीवन को और भी खुशहाल बना दिया | खुशखबरी रज्जो को सुनायी ,फिर तो एक परछाई की तरह वह मेरे पीछे ही रही | सचमुच एक माँ की तरह |  ‘मास्टरनी , आपको लड़का होगा लड़का ।’  हर दिन जब वह यह कहती रही तो उसे चिढाने के लिए मैंने कहा, ‘लड़की पैदा हुई  तो क्या होगा ? हमें तो लडकी चाहिए | ‘ उसके चेहरे की मुस्कान तुरंत फीकी पड़ गई थी | बाद में हमारा वह नन्हा सपना जब पेट में ही ख़तम हो गया  तो मुझे दिलासा  देने के लिए वह दिन रात मेरे साथ रही | उन्हीं दिनों उसने मुझे अपनी कहानी सुनायी थी |       

        चौदह साल की थी वह जब  उसकी शादी दुर्गाप्रसाद के साथ हुई थी | महाराष्ट्र के गाँवों में छोटी उम्र में ही लडकी-लड़के का ब्याह होता है | शादी के बाद वह गर्भवती हुई , गाँव के डाक्टर ने स्कैन करके बताया कि लडकी होनेवाली है | इसीलिये पति ने उसका गर्भपात करवाया | एक बार नहीं तीन-तीन  बार। सास  उसे यह कहकर कोसती थी कि लड़कों को जन्म न देनेवाली  परिवार के लिए अभिशाप है। उसके हर काम में वह मीन-मेख निकालती थी ,खरी खोटी सुनाती थी | अब तो सास उसे  ससुराल आने ही नहीं देती | छुट्टियों में जब दुर्गा प्रसाद गाँव जाता है  तो रज्जो यहीं क्वार्टर्स में ही रहती है । अब वह फिर से मां बननेवाली है | पर अपने पति से उसने यह बात छुपायी है |

‘मैं माँ बनना चाहती हूँ मास्टरनी, कितनी बार अपने बच्चों को यूं मारती रहूँ ? अब चाहे लड़का हो या लडकी ,मुझे इसे जनाना है |’  इसलिए  उसने अभी तक अपने पति को यह जानकारी नहीं दी है।

‘ पर कब तक रज्जो ?’ मैंने पूछा | ‘कुछ महीने बाद उसे अपने आप ही पता चलेगा |’  मैंने उसे सलाह दी कि एक और गर्भपात उसके जीवन को खतरे में डाल देगा और इसलिए ऐसा नहीं होने देना चाहिए चाहे कुछ भी हो जाए।      

रात को मैंने रज्जो के बारे में अजीत को बताया | अजीत ने दुर्गा प्रसाद को बुलाकर बात की | मास्टरजी के सामने तो सिरर हिलाकर वह सब कुछ सुनता रहा | मास्टरजी के साथ वह बहस नहीं कर सकता था |

रज्जो उसके बाद भी घर आती रही |  कल जब मैंने उसे देखा तो उसकी आँखों में बड़ी थकान थी। आठवां महीना था और इसलिए मैंने उसे यह कहकर वापस भेज दिया कि अब काम पर न आना। उसे आराम की ज़रुरत थी | वह फिर वहीं खड़ी रही मानो कुछ कहना बाकी हो । मैं बच्चों की  ट्यूशन में इतनी व्यस्त थी  कि उनकी ओर  ध्यान देने का समय नहीं था और यह भी पता नहीं चला कि वह कब लौट गयी ।     

‘सुमा , चलो,उतरो ..अस्पताल आ गया ।‘ अजीत की आवाज़ एकदम चौंकानेवाली थी …मेरा ह्रदय जोर-जोर से धड़कने लगा | मारे भय के मैं कांप रही थी | रज्जो का सामना कैसे करूँ ?

‘मैं क्या कर सकती हूँ अजी , रज्जो ने मुझसे मिलने को क्यों कहा है …आखिर उसको यह एक्सीडेंट हुआ कैसे ?’’ मैं रो रही थी |

” ये सब उस  साले दुर्गाप्रसाद की करामत है ‘..अजी की आवाज़ में रोष था | उसने बेचारी रज्जो के शरीर पर केरिसिन डालकर जलाया था | गाँव में किसी डाक्टर को दिखाया तो उसने बताया पेट में लडकी है … गर्भपात अब संभव नहीं  है, क्योंकि यह आठवां महीना है… बस ‘’ कहते –कहते अजी की साँसें फूल रही  थी |

‘ सुमा ,केवल तुम्हें  अंदर जाने की अनुमति है । पड़ोसियों से थोड़ी सी जानकारी ही मिली  है | उसी के तहत  आर्मी  पुलिस ने दुर्गा को  हिरासत में ले लिया है , पर  रजवंती ने अब तक कोई बयान नहीं दिया है। उसका बयान ही दुर्गा को सज़ा दे सकता है | इसीलिये तुम्हें लाया गया | तुमसे तो रज्जो सब कुछ बतायेगी न |’  अजीत की बातों से उसे हादसे की पूरी जानकारी मिली |  

तो क्या यही आपत्ति जताने के लिए कल वह घर में आयी थी ? मैंने टाल दिया था उसे … क्या मैं उसे बचा सकती थी ? दिमाग में कई प्रश्न एक साथ आने  लगे | क्या मैं बचा सकती थी उसे ?

सहसा अजीत ने पीछे से पुकारा,       “उस साले को  ऐसे मत छोड़ो सुमा , रज्जो से बयान दिलवाना ज़रूर  |’

आई सी यू वार्ड की तीखी गंध नाक में भर रही थी | भय के मारे मैं  थर-थर कांप रही थी | पुलिस ने सीधे मुझे रज्जो को पास  पहुंचाया |

ओह..कितना भयानक था वह दृश्य …सिर्फ ..सिर्फ एक बार ही उस अध जले  चेहरे देख पाया  | रज्जो के चेहरे का एक हिस्सा पूरी तरह विकृत हो गया था | शरीर पूरा ढका हुआ था ताकि और कुछ दिखाई न दे | वेदना से वह कराहती जा रही थी | मुझसे रहा नहीं गया | सर चकरा रहा था कि पुलिस ने पकड़ लिया और पास की कुर्सी पर बिठा दिया।     

‘मैडम, ज्यादा वक्त  नहीं है उसके पास  और गला पूरा जल गया है कि वह ठीक से बोल भी नहीं सकती …जल्दी  पूछ लीजिये  कि क्या हुआ।’

रज्जो की अध खुली आँखों में देखकर मैंने  पुकारा, “रज्जो!”

असहनीय पीड़ा के बावजूद उस के चेहरे पर हल्की मुस्कान सा हल्की सी लहर  छलकने लगी |

“रज्जो , ये सब हुआ कैसे ?  …दुर्गा ने ऐसा क्यों किया?”उसकी होंठ धीरे-धीरे हिलने लगी।

‘ मास्टरनी , तुम आयी  मुझसे मिलने…’ आँखों से आंसू बराबर बहने लगे …|.    ‘ अब तो सबकुछ  खत्म हो गया, मास्टरनी ! अच्छा ही हुआ मेरी बच्ची पैदा नहीं हुई | नहीं तो उसे भी ..’ उसकी पतली आवाज गले में अटक गयी |

मैंने सवाल दोहराया.. ‘रज्जो,  क्या दुर्गा ने यह जघन्य अपराध किया था?  क्या उसे तुम्हारे गर्भ में पल रहे बच्चे की याद ही नहीं आयी?’

यही मेरी नियति है मास्टरनी , हमारे यहाँ स्त्रियों  की यही किस्मत है। किसे दोष दे?’  उसकी आवाज़ इतनी पतली थी , ठीक समझ नहीं पा रहा था | लेकिन उसकी वे बड़ी-बड़ी आंखें मुझसे बराबर बोलती जा रही थी । उसे यह खबर सुकून दे रही थी कि उसकी बच्ची ऐसे समाज में पैदा ही नहीं हुई, नहीं तो वह उसीकी कहानी दोहराती | पति के खिलाफ बयान देकर वह उसे दंड दिलाना भी नहीं चाहती ? किसलिए ? किसके लिए ? इस क्रूर समाज से शायद उसका यही प्रतिकार था | शायद उसे क्षमा करने का महारत हासिल था |  उसकी आँखों से आंसू की ऐसी लड़ी निकल रही थी जिसमें मेरे सारे सवालों का जवाब थे। न जाने कब वे आँखें निश्चल हो गईं । पहली बार किसी की मौत अपनी आँखों से देख रही थी | रज्जो मर चुकी है , …यह विचार मेरी रूह को कंपा रही थी | कल तक मेरा साया बनकर चलनेवाली,मेरी सहेली .. वह  हम सब को छोड़कर जा चुकी है   … अब तो सास उसे कोई श्राप नहीं देगी ,पति ताने नहीं मारेंगे , …कोई नहीं कोसेंगे उसको ….अपने सारे दुःख –दर्द से उसे छुटकारा मिल चुकी है । रोम-रोम में असहनीय पीड़ा सहकर भी वह अपने पति के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोली  जिसने  कभी भी उससे प्यार नहीं किया,कभी उसे अपना नहीं माना |     

कई साल बीत चुके हैं पर आज भी रज्जो की आंसू भरी निगाहें मेरे दिल और दिमाग में ताज़ी हैं |   क्या स्त्री होना इतना बड़ा जुर्म है ?लडकी पैदा करवाना क्या श्राप है |