सजा
संस्मरण
शीर्षक- सजा
घटना आज से चार-पाँच साल पहले की है। मेरे पति सुबह सुबह ऑफिस के लिए निकलकर हैदराबाद के कारखाना नामक जगह पर पहुँचे थे,सुबह के कारण सड़क थोड़ी खाली ही थी।तभी एक वृद्ध व्यक्ति जिसकी उम्र 60/ 65 साल की होगी,अचानक सड़क पर गिरकर बेहोश हो गया। सब लोग वहाँ से गुजर रहे
थे लेकिन कोई मदद के लिए रूक नहीं रहा था।मेरे पति वही बाइक को रोक दिए और फोन करके बगल के पुलिस स्टेशन से पुलिस को बुला लिया। पुलिस के साथ मिलकर वृद्ध व्यक्ति को गांधी हॉस्पिटल में भी पहुँचाया।वह वृद्ध बहुत गरीब था,इसीलिए मेरे पति ने 500 रुपए उसके हाथ में रखकर वापस ऑफिस चले गए। वृद्ध व्यक्ति को होश आ गया था,उसने मेरे पति को बहुत दुआएँ भी दी।
दूसरे दिन हम लोगों को पता चला कि वृद्ध व्यक्ति का बेटा और पुलिस दोनों मिलकर मेरे पति के ऊपर केस कर दिया कि मेरे पति ने ही एक्सीडेंट किया है। हम लोग अवाक रह गए थे।मेरे पति वृद्ध व्यक्ति से मिलने हॉस्पिटल गए और उसे बहुत भला बुरा भी कहा।पता नहीं,वृद्ध व्यक्ति ने तेलुगु में क्या क्या कहा,मेरे पति को कुछ भी समझ में नहीं आया। हाँ,केस खत्म करने के लिए उन्हें 20000 रुपये पुलिस को देने पड़े। उस दिन हम लोगों को समझ में आया कि आखिर सड़क पर पड़े लोगों की मदद कोई क्यों नहीं करता है? ऑफिस में मेरे पति के बॉस ने कहा था,” शर्मा,किसने कहा था,बाइक रोककर मदद करो।”मेरे पति ने एक ही पंक्ति कहा,”सर, मुझे लगा कि मेरे पिताजी सड़क पर गिरे हैं इसलिए मैंने मदद की।” उसके बाद हम में से कोई भी उनसे से कुछ भी प्रश्न नहीं किया।
इस घटना के चार महीने के बाद मेरे पति को एक दिन वृद्ध व्यक्ति का बेटा ने फोन पर बोला कि एक बार आप मेरे घर आ जाइए। गुस्सा के कारण मेरे पति उसके घर जाना नहीं चाहते थे,लेकिन उसके बार-बार आग्रह करने पर वे उसके घर गए। जैसे वहाँ गए,वृद्ध व्यक्ति उनके पैरों पर गिर पड़ा और बार-बार माफी माँगने लगा। मेरे पति ने कहा कि हाँ, मैंने माफ कर दिया।जैसे इनके मुँह से माफी शब्द निकला वैसे ही वृद्ध व्यक्ति ने दम तोड़ दिया।वृद्ध व्यक्ति की मृत्यु के बाद मेरे पति ने उसके अंतिम काम क्रिया के लिए 1000 रुपये उसके बेटे को दिया और वापस आ गए। उसके बेटे ने बताया था कि उसे पुलिस वालों ने ही केस करने को कहा था और इसके बदले में पुलिस वालों ने उसे 5000 रुपये दिए थे। इस बात का पता जब उसके पिता को चला था तो वे माफी माँगना चाहते थे और बीमार भी रहने लगे थे।वृद्ध व्यक्ति को कुछ स्किन की बीमारी भी हो गई थी और इसी बीमारी की वजह से उसकी मृत्यु भी हुई। लेकिन हम लोग आज तक यही सोचते हैं कि मदद करने की सजा के बदले में हमें 21500 रुपये की राशि भुगतान करनी पड़ी। मेरे पति आज भी बोलते हैं कि यह पिछले जन्म का कर्ज था जो मैंने वृद्ध व्यक्ति को दिया,अब भी कोई व्यक्ति सड़क पर असहाय गिरा हो तो मैं मदद जरूर करूँगा। मैं भी यह मानती हूँ कि चाहे जो हो,इंसानियत से भरोसा नहीं उठना चाहिए।
रचनाकार- मनोरमा शर्मा
स्वरचित एवं मौलिक
हैदराबाद
तेलंगाना