बैंक का रोकड़िया
बैंक के रोकड़िए का
कैसा नसीब हैं
दिन भर दोनों हाथ
सने रहते रोकड़ में
फिर भी रोकड़ की
पहुँच से दूर हैं
मौलिक एवं स्वरचित
जगदीश गोकलानी “जग ग्वालियरी”
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बैंक के रोकड़िए का
कैसा नसीब हैं
दिन भर दोनों हाथ
सने रहते रोकड़ में
फिर भी रोकड़ की
पहुँच से दूर हैं
मौलिक एवं स्वरचित
जगदीश गोकलानी “जग ग्वालियरी”