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कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी के गांव में

<span;>कल जहां बसती थी खुशियां आज है मातम वहां…। हिंदी फिल्म ‘वक्त’ का यह मशहूर गीत रामवृक्ष बेनीपुरी के गांव पर सटीक बैठता है। जिस बेनीपुर में कभी साहित्यिक गोष्ठियों में कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी के ठहाके गूंजते थे आज वहां सन्नाटे में अगर सुनाई देती है तो मात्र हवाओं की सनसनाहट। 2021 में पहले दिन हमसभी बेनीपुर के लिए निकले थे। एक बार फिर इस यात्रा के प्रेरक नूतन साहित्यकार परिषद के अध्यक्ष व अभिभावक चंद्रभूषण सिंह चंद्र थे। उनकी प्रिय मारुति आल्टो कार हमलोगों की हमसफर थी। साथ में थे दैनिक भास्कर के रोहित रंजन व दैनिक जागरण के पत्रकार ब्रजेन्द्र भाई।

<span;>         सीतामढ़ी रोड में जनार बांध से पूरब की ओर ईंट सोलिंग सड़क पर हमसभी बढ़ रहे थे। इसी बीच बेनीपुर हाल्ट के पास बाइक पर सवार हेलमेट लगाए एक व्यक्ति ने हमलोगों की कार को रोका। कार से निकलने के बाद देखा कि औराई के दैनिक जागरण रिपोर्टर शीतेश भाई थे। उन्हें देखकर हमसभी चौंक गए। साथ में खुशी भी हुई कि बेनीपुरी जी के गांव में अब हमसभी की यात्रा आसान हो जाएगी। चंद्रभूषण सर ने कहा कि सच्ची व अच्छी नीयत हो तो किसी भी काम के लिए रास्ता आसान हो जाता है। ऐसा हुआ भी। शीतेश भाई के नेतृत्व में हमलोगों की कार आगे बढ़ चली। बेनीपुरी के गांव में जाने के लिए बागमती की उपधारा नाव से पार करना होता है। ग्रामीणों ने बताया कि यह उपधारा बागमती तटबंध बनाने के दौरान मिट्टी काटने से बनी है। मुख्य धारा बेनीपुरी जी के घर से पूरब व उत्तर है। नाव खेवने के लिए पतवार शीतेश भाई ने थाम ली थी। नाव से उतरने के बाद दूर दूर तक खेतों में खेसारी की फसल दिख रही थी। यह देखकर मुझे व ब्रजेन्द्र भाई को अपने गांव के बूढ़ी गंडक नदी के किनारे के ढाब में उपजने वाले खेसारी के खेत याद आ गए। बचपन के दिनों में खेसारी के साग में हरी मिर्च व नमक डाल कर बनने वाले लहरा का स्वाद जेहन में ताजा हो गया। खेतों के बीच आड़े-टेढ़े लीक से होकर हमसभी बढ़ चले बेनीपुरी की के घर की ओर। प्यास लगी तो हमलोगों ने एक सज्जन के घर चापाकल का पानी पिया। सभी ने पानी के स्वाद की तारीफ की। गृहस्थ ने बताया कि 190 फीट का चापाकल है। आगे बढ़ने पर बागमती परियोजना की त्रासदी दिखने लगी। खंडहर बना स्कूल भवन हो या लोगों के मकान। सभी एक सभ्यता के मरने की गवाही दे रहे थे। बिना तार के बिजली के पोल इस बात के गवाह थे कि कभी गांव में रौशनी बरसती रही होगी। आज वीरानगी का आलम है। बेनीपुरी जी के घर के पहले मिले अनिल कुमार सिंह। लगभग पांच फीट की उंचाई पर बना है उनका मकान। 2007 में बागमती परियोजना लागू होने के बाद पूरा गांव विस्थापित हो गया है। गांव में रहने वाले दर्जनभर परिवार में उनका भी परिवार शामिल है। गांव में रहने का कारण कही न कही अपनी मिट्टी से गहरा जुड़ाव दर्शाता है। मिलने पर पूरी आत्मीयता से उन्होंने हमसभी की आगवानी की। उनके यहां बेनीपुरी जी के स्मारक से लौटकर लौटकर चाय पीने की इच्छा  शीतेश भाई ने जाहिर की। तब अनिल जी ने कहा कि ‘हमनी त लोग के इंतजार करईछी’। उनके इस वाक्य ने सभी को स्नेह से अभिभूत कर दिया। सचमुच इतनी आत्मीयता अब कहां मिलती है? आगे बढ़ने पर खंडहर मकानों से गुजरने हुए हमसभी बेनीपुरी जी के स्मारक के सामने थे। जिस स्मारक व मकान को सालों से अखबारों के पन्नों में देखते थे आज उससे रूबरू होकर धन्य महसूस कर रहे थे। चंद्र जी के साथ हमसभी ने बेनीपुरी जी की प्रतिमा को प्रणाम किया। प्रतिमा की हालत देखकर चंद्र जी ने इसे दुरुस्त करने की जरूरत बताई। गांव के ही देवकी मंडल ने बताया कि उटखाटी (बदमाश) चरवाहा सब मूर्ति के खराब कर देले हय। हमलोगों को देखकर पहुंचे ग्रामीण संजीव कुमार सिंह से सभीलोगों की एक साथ की तस्वीर मोबाइल में खींचने का आग्रह किया। तब संजीव ने कहा कि हमरा फोटो खींचे न आबाईअ। हमनी के मोबाइल न हंसुआ व खुरपी चाही। इस वाक्य ने आइना दिखाया कि भौतिकता के दौर में खेती-किसानी ही गांव की जड़ों को मजबूत रखेगा। बहरहाल,ब्रजेन्द्र भाई की ट्रेनिंग से संजीव ने हमसभी की ग्रुप फोटो बखूबी खींची। बेनीपुरी जी का  मकान जिसे उन्होंने स्मारक के रूप में रखने की अपनी जिंदगी में ही घोषणा कर रखी थी आज खस्ता हालत में है। अपनी डायरी के पन्ने में आठ दिसंबर 1952 को उन्होंने लिखा है कि यह मेरा मकान नही मेरा स्मारक है। इस बदनसीब देश मे जहां कालिदास व तुलसीदास के स्मारक नही बन सके तो बेनीपुरी के स्मारक की याद किसे रहेगी ? ऐसे में अपने मकान को ही ऐसा मजबूत बनाये जो कम से कम चार पांच सौ साल कायम रहे।  सचमुच उनकी आशंका सच साबित हो गई। विशाल व भव्य पोर्टिको व बरामदे,बड़े-बड़े कमरे व खिड़कियों वाला मकान बागमती नदी की लाई मिट्टी से कमर तक भर चुका है। हालांकि 23 दिसंबर 2020 को उनकी जयंती पर डीएम चंद्रशेखर सिंह ने स्मारक के संरक्षण के लिए तीन करोड़ से अधिक की लागत से डीपीआर तैयार किये जाने की घोषणा की है। जिससे ग्रामीणों को साहित्यप्रेमियों को उम्मीद है कि बेनीपुरी जी की इच्छा पूरी हो सकेगी। स्मारक से लौटते समय अनिल जी के दरवाजे पर चाय व बिस्कुट के साथ आतिथ्य स्वीकार किया। वहां से यादों को संजोए हमसभी वापस लौटने लगे। उपधारा को पार करने के बाद उपधारा की दूसरी ओर बांध किनारे बनने वाले बेनीपुरी स्मारक स्थल की जमीन को भी हमने देखा। लौटने के क्रम में जनार बांध पर दैनिक भास्कर के औराई के संवाददाता नवीन झा मिले। वहां विशेष आग्रह पर दो रसगुल्ला व दो बालूशाही यानि कुल चार-चार मिठाई का लुत्फ उठाया। हालांकि चंद्र सर ने मात्र दो रसगुल्ला खाया। फिर स्पेशल चाय पीने के बाद शीतेश भाई को विशेष धन्यवाद देते हुए हमलोग खादी भंडार कन्हौली के लिए निकल पड़े।