सूफी काव्य में पर्यावरण चेतना (‘पद्मावत’ के विशेष संदर्भ में)
सूफी काव्य में पर्यावरण चेतना
(‘पद्मावत’ के विशेष संदर्भ में)
शोध सार
हिन्दी साहित्य में काव्य की विभिन्न धाराएँ देखने को मिलती हैं। हिन्दी साहित्य की शुरुआत से ही इन धाराओं का विकास साहित्य में देखा जा सकता है। हिन्दी साहित्य का चाहे आदिकाल हो, भक्तिकाल हो, रीतिकाल हो या फिर आधुनिक काल रहा हो। काव्य की विविध धाराएँ विकसित होती रही हैं। हिन्दी साहित्य के भक्ति काल में उन्हीं में से एक धारा है सूफी काव्य धारा या प्रेम काव्य धारा एवम् इस धारा का प्रतिनिधि ग्रन्थ है मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत। पद्मावत अपने आप में विविध विषयों या सरोकारों को समाहित किए हुए है। उन्हीं में से एक प्रमुख विषय जो उस समय तथा वर्तमान में अत्यधिक प्रासंगिक है वह है पर्यावरण चेतना।
मुख्य शब्द- पर्यावरण, सूफी, प्रेम, धारा, चेतना, जायसी, पद्मावत
शोध विस्तार
पर्यावरण शब्द संस्कृत की ‘‘वृ’’ धातु में ‘परि’ तथा ‘आ’ उपसर्ग एवम् ल्युट प्रत्यय जोड़ने पर बना है। अर्थात् परि $ आ $ वृ $ ल्युट् पर्यावरण।1 मनुष्य के सम्पूर्ण क्रियाकलाप व भौतिक वस्तुएँ तथा समस्त विचारणाएँ जिनके द्वारा आच्छादित हैं उन परिस्थितियों तथा वातावरण को पर्यावरण कहते हैं। पर्यावरण एक अविभाज्य समष्टि है। भौतिक, जैविक एवम् सांस्कृतिक तत्वों वाले पारस्परिक क्रियाशील तंत्रों से इसकी रचना होती है। ये तंत्र अलग-अलग तथा सामूहिक रूप से विभिन्न रूपों में परस्पर सम्बद्ध होते हैं। सूफी काव्य धारा जिसमें कथानक पर्यावरण से जुड़ा हुआ है। विभिन्न सूफी ग्रंथों में अन्य बिषयों की तरह पर्यावरण चेतना पर विशेष ध्यान आकृष्ट किया गया है। और यह विषय प्रत्येक सूफी ग्रंथं का महत्वपूर्ण एवं प्रमुख विषय बनकर उभरा है।
जायसीकृत पद्मावत में पर्यावरण चेतना विद्यमान है। यह पर्यावरण चेतना निम्नलिखित रूपों में परिलक्षित होती है।
प्राकृतिक पर्यावरण चेतना-
पंच महाभूत पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश एवम् वायु प्राकृतिक पर्यावरण के मुख्य स्त्रोत हैं। पद्मावत में प्राकृतिक पर्यावरण चेतना का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। पद्मावत में दर्शाया गया है कि सिंघल द्वीप के चारों ओर आम के बगीचे थे, इस प्रकार के अनेक उपवन भी थे, जिनमें भाँति-भाँति के वृक्ष खड़े थे। पेड़ों की स्निग्ध और शीतल छाया में पक्षी एवम् पथिक आश्रय लेते थे, पक्षियों का मधुर कलरव उस प्रदेश को आनन्द से भर देता था।
‘‘बसहिं पंखि बोलहिं बहु भाखा, बुरहि हुलास दखि कै साखा।’’2
सिंहल द्वीप में मानसरोदक सरोवर है, अनेक छोटे बड़े ताल-तलैया भी हैं, कुछ तालाब तो इतने विशाल हैं, कि एक किनारे पर खड़े होकर दूसरा किनारा दिखाई नहीं देता। तालाबों में जल के फूल तथा जल के पक्षी है।।
‘‘ताल, तलाब बरनि नहिं जाहीं, सूझै बार-पार कहुँ नाहीं।
फूले कुमुद सेत उजियारे, मानहुँ उए गगन महुँ तारे।।’’3
जायसी ने बारहमासा के रूप में एवम् षड् ऋतु वर्णन के रूप में प्राकृतिक पर्यावरण के प्रति चेतना को दर्शाया है। आकाश में बादल गरजने लगे हैं। उड़ते हुए बगुलों की पंक्ति शोभायमान हो रही है। मेंढ़क, मोर, कोयल और पपीहा प्रसन्न होकर बोल रहे हैं। स्वच्छ जल में सारस किलोलें कर रहे हैं और ख्ंाजन पक्षी शोभा बढ़ा रहे हैं। आम्र डालियों पर आम पक गए हैं। तोता उनका रसास्वादन कर रहे हैं।
पद्मावत के उक्त वर्णन से यह पता चलता है कि तत्कालीन समाज में प्रकृति के अंगों जैसे सरोवर, नदी, वन, उपवन पक्षी एवम् प्राकृतिक जन्तुओं के प्रति पर्याप्त प्राकृतिक पर्यावरण चेतना विद्यमान थी।
सामाजिक पर्यावरण चेतना-
पद्मावत में तत्कालीन समाज में बहु विवाह की प्रथा थी। रत्नसेन रानी नागमती के होते हुए भी पद्मावती से विवाह करके चित्तौड़ ले आया था। पत्नियाँ पतिवृत धर्म का पालन करती थी।
‘‘नागमती रूपवंती रानी, सब रनिवास पाठ परधानी।
नागमती पद्मावती रानी, दुवौ महासत सती बखानी।।’’4
उस समय घरों में पक्षी पाले जाते थे। पालतू पक्षियों में तोता प्रमुख था। सिंहल द्वीप की राजकुमारी का पालतू तोता हीरामन था।
पद्मावत में सभी मांगलिक कार्य शुभ मुहूर्त में किए जाते थे। पण्डित जन ज्योतिष के आधार पर शुभ मुहूर्त बताते थे।
‘‘पत्रा काढ़ि गवन दिन देसहिं, कौन दिवस दहुँ चाल।
दिसा सूल चक जोगिनी, सोंह न चलिए काल।।’’5
पद्मावत में विवाह के अवसर पर पिता अपनी पुत्री को स्वेच्छा से प्रसन्नता पूर्वक दहेज दान करता था। जो पुत्री के ससुराल जाने के साथ जाता था। पद्मावती और रतनसेन विदा होकर चित्तौड़ जाने लगे। तो पद्मावती के पिता गन्धर्व सेन ने दहेज के रूप में बहुत सी सम्पत्ति दी।
जायसी ने जिसका वर्णन इस प्रकार किया है
‘‘भले पंखेर जराव सँचारे, लाख चारि एक थरे पिटारे।
रतन पदारथ मानिक मोती, काढ़ि भण्डार छीन्ह रथ जोती।।’’6
उक्त वर्णन में खुशहाल सामाजिक दशा का चित्रण मिलता है। किन्तु कुछ स्थानों पर सामाजिक बुराईयों का चित्रण भी किया गया है। उन सामाजिक बुराईयों को चित्रित करके कवि का लक्ष्य तत्कालीन समाज से उन्हें दूर करने का रहा होगा। उस समय राजाओं को शिकार खेलने का शौक था, हिंसा का भाव होने से यह एक सामाजिक बुराई है, बहुविवाह एवम् सती प्रथा का वर्णन करके उसे भी दूर करने का लक्ष्य रहा होगा। जो की सामाजिक पर्यावरण के सुदृढ़ स्वरूप के प्रति चेतना को दर्शाता है साथ ही सामाजिक पर्यावरण की शुद्धि और उसके सुसंस्कारित रूप को बनाये रखने के लिये प्रेरित करता है।
आर्थिक पर्यावरण चेतना-
पद्मावत में तत्कालीन समाज समृद्ध दिखाई देता है कहीं भी अभाव, कलह एवम् आर्थिक संघर्ष का वर्णन नहीं मिलता। उस समय लेाग जहाज से यात्रा करते थे। समुद्री मार्ग से ही व्यापार होता था। लोगों के पास सोना, चाँदी, माणिक, मोती एवम् रत्नों के भण्डार थे। गायें, घोड़े एवम् पर्याप्त कृषि भूमि थी। व्यापारी, व्यापार से समृद्ध थे। इस प्रकार तत्कालीन समाज में आर्थिक पर्यावरण के प्रति चेतना प्रदर्शित होती है।
सांस्कृतिक पार्यवरण चेतना-
पद्मावत में सांस्कृतिक पर्यावरण चेतना भी दृष्टिगोचर होती है। धर्म, भक्ति, सौन्दर्य एवम् कला संस्कृति के अंग हैं। इन अंगों का पद्मावत में पर्याप्त वर्णन मिलता है। पद्मावत् में जिस समय का वर्णन किया गया है उस समय के जोगी, सारंगी बजाकर गाते थे और सिंगी फूंकते थे। लोग सौन्दर्य के पुजारी थे। राजा रत्नसेन, हीरामन, तोता से पद्मावती के सौन्दर्य का वर्णन सुनकर घर से निकल पड़ा और जोगी बन गया।
‘‘तजा राज, राजा था जोगी किंगरी कर गहेउ वियोगी।
तब विसँभर मन बाउर लटा, अरुझा, पे्रेम परी सिर जटा।
चन्द्र बदन और चन्दन दहा, भसम चढ़ाई कीन्ह तन खेहा।
मेखल, सिन्घी, दंड कर गहा, सिद्ध होई कहँ गोरख कहा।
मुद्रा स्त्रवन कंठ जपमाला, कर उपदान, काँध बघछाला।।’’7
पद्मावत के ‘स्तुति खण्ड में सृष्टिकर्ता का स्मरण किया गया है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का रचनाकार उसी को माना है। उसकी भक्ति करना सृष्टि के लिए आवश्यक बताया गया है। वह सब कुछ देने में समर्थ हैं। पद्मावत में हिन्दू परिधान में इस्लाम के प्रचार की भावना का संकेत मिलता है। उक्त सभी तथ्यों से यह संकेत मिलता है कि तत्कालीन समाज में सांस्कृतिक पर्यावरण के प्रति चेतना विद्यमान थी।
राजनीतिक पर्यावरण चेतना-
राजा के महल इस प्रकार हैं, जैसे इन्द्र के महल हों। चैपालों पर चन्दन के खम्भे हैं। सभापति लोग उन्हीं के सहारे बैठे हैं। नगर निवासी गुणी, पण्डित और ज्ञानी हैं। सभी संस्कृत भाषा में व्यवहार करते हैं। किला आकाश को छू रहा है। किले के चारों ओर खाई है। सिंहल गढ़ में नौ चक्र है।ं इनके घर वज्र के समान दुर्भेद्वद्य हैं। चार प्रकार के सामंतों का वर्णन है।
‘‘गणपति, अश्वपति, गजपति और नरपति।
गढ़ पर बसहिं झारि गढ़ पति, असुपति, गजपति भू-नर-पाती।
सब धौराहर सोने राजा, अपने अपने घर सब राजा।।’’8
राजा वीर एवम् कला निपुण दिखाए गए हैं उनके सैनिक एवम् सेनापति आस-पास शान के लिए प्राणों की आहुति देने वाले हैं। दरबार में सभी कलाओं के रत्न विद्यमान हैं। प्रजा में राजा की पूरी रुचि है।
निष्कर्ष-
उक्त सभी वर्णनों के आधार पर हम कह सकते हैं कि जायसीकृत पद्मावत में पर्यावरण के सभी दृष्टिकोणों के प्रति पर्याप्त पर्यावरण चेतना विद्यमान है। तत्कालीन समाज एवम् व्यवस्था पर्यावरण के लिए पूरी तरह जागरूक है। जायसीकृत पद्मावत पर्यावरण के तमाम अंग और उप अंगों को अपने में समाहित किये हुये है। और उनका वर्णन इस तरह से किया गया है की वह तत्कालीन समाज की पर्यावरण के प्रति चेतना को दिखाता है और उस समय की पर्यावरण चेतना की प्रासंगिकता को वर्तमान समय में भी प्रासंगिक बनाकर पर्यावरण संरक्षण कर एक स्वस्थ समाज के निर्माण की प्रेरणा देता है।
सन्दर्भ-
1. आप्टे वामन शिवराम, संस्कृत हिन्दी शब्दकोश, पृ. 80
2. शुक्ल रामचन्द्र, जायसी ग्रंथावली, सिंहल द्वीप वर्णन खण्ड, पृ. 5
3. शुक्ल रामचन्द्र, जायसी ग्रंथावली, सिंहल द्वीप वर्णन खण्ड, पृ. 10
4. शुक्ल रामचन्द्र, जायसी ग्रंथावली, पद्मावती नागमती सती खण्ड, पृ. 34
5. शुक्ल रामचन्द्र, जायसी ग्रंथावली, भूमिका पृ. 31
6. शुक्ल रामचन्द्र, जायसी ग्रंथावली, भूमिका पृ. 31
7. शुक्ल रामचन्द्र, जायसी ग्रंथावली, भूमिका पृ. 31
8. शुक्ल रामचन्द्र, जायसी ग्रंथावली, सिंहल द्वीप वर्णन खण्ड, पृ. 22
राहुल श्रीवास्तव
अतिथि सहायक प्राध्यापक(हिंदी)
जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर मध्यप्रदेश भारत