गंभीर जुआरी – युधिष्ठिर के अवतार
कोई पूछ बैठे कि जुआ अधिक से अधिक किस देश में खेला जाता है? तो ’देश’ सुनते ही लास वेगास को भूलना पड़ता है। आश्चर्यजनक उत्तर इस बात में मौजूद है कि आस्ट्रेलियावासी उत्तरी अमेरिका के देशों से प्रति व्यक्ति दुगुना खेलते हैं। तभी तो यहाँ के केवल 2.1 करोड़ लोगों के बीच दुनिया की 20% पोकर मशीने लगी हुई हैं। कुल आबादी के हिसाब से आस्ट्रेलिया का विश्व में 52 वा स्थान हो तो क्या हुआ? कुल पोकर मशीनो के हिसाब से उसे 7 वा स्थान होने का गौरव प्राप्त है। यहाँ 10 ऐसी मशीने पाई गई जहाँ आ कर लोग एक वर्ष में 1 से 2 करोड़ डालर (प्रत्येक मशीन पर) तक स्वाहा करते हैं। फिर क्यों न आस्ट्रेलिया को दुनिया का सबसे बड़ा जुआरी देश समझा जाय!
माना कि पश्चिमी देशों में जुये के मामले में मूल्य कुछ अलग हैं। मनोरंजन के लिये यहाँ थोड़ा बहुत जुआ खेल लेना बुरा नहीं समझा जाता पर इसे अजूबा नहीं तो और क्या कहा जाय कि मेलबर्न कप की घुड़दौड़ के दिन (जो कि नवम्बर माह के पहले मंगलवार को ’मनाया’ जाता है! ) जैसे पूरे देश की साँस रूक जाती है और एक उत्सव जैसा वातावरण हो जाता है। पिछली 1 नवंबर को मैंने भारत में अपने मित्र को फोन पर बताया कि “आज मेलबर्न कप की घुड़दौड़ होने से यहाँ मेलबर्न में सरकारी और गैर सरकारी सभी जगहों पर अवकाश है” तो उसने बार-बार “घुड़दौड़ की छुट्टी!” कह कर हँसते हँसते अपना बुरा हाल कर लिया।
मनोरंजन का उद्देश्य अलग किन्तु जिन लोगों को जुये में भारी वित्तिय हानी सहनी पड़ती है और साथ ही परिवार का टूटना, घर बेचा जाना, जघन्य अपराध , मानसिक तनाव और आत्महत्या आदी से गुजरना पड़ता है उन्हे ’गंभीर जुआरी’ की संज्ञा दी जाती है। शोध-कर्ता बताते हैं कि जुआ खेलना और गंभीर जुआरी होना ये दोनो अलग अलग चीजें हैं। दोनो को विभाजित करने वाली रेखा व्यक्ति की आकांक्षा में है। यदि आप पैसा कमाने के लिये या धनवान बन जाने के लिये जुआ खेलते हैं तो यह नैतिक रूप से गलत है क्योंकि तब आप धनोपार्जन के लिये बुद्धि या परिश्रम को महत्व नहीं देते – भाग्य के भरोसे रहना चाहते हैं। लेकिन मान लीजिये वास्तव में आप पैसा बनाने के इरादे से नहीं खेलते तो उसे आप अपनी आर्थिक समस्याओं का समाधान समझ कर नहीं खेलेंगे फिर आप हद से ज्यादा पैसा और समय गवाँना भी मंजूर नहीं करेंगे। इन हालात में जुआ केवल दिल बहलाव का साधन समझा जा सकता है। अपने इस विधायक रूप में यह मनोरंजन के अलावा सामाजिक मिलाप का एवं मीठी आशा और मीठे सपनों का अवसर समझा जाता है। हालाँकि धर्म भी यही सब कुछ दे देता है – मीठी आशा और मीठे सपने। पर जब धर्म की पकड़ ढीली होने लगती है तो कुछ लोग इसके लिये जुये की तरफ भागते हैं।
अब प्रश्न उठता है गंभीर जुआरी कौन है? सर्वमान्य परिभाषा के अनुसार गंभीर जुआरी वह है जिसमें इन दस में से ५ संकेत मौजूद हों : बार बार जुये का विचार आना, लम्बा समय जुये में बिताना, जुये का अवसर न मिलने पर चिड़चिड़ापन, समस्या से भागने के लिये जुआ खेलना और जुये में नुकसान पूरा करने के लिये ज्यादा खेलना। केवल इन पाँच संकेतों से यह तो तय हो जाता है कि खेलने के लिये केसिनो में प्रवेश करते समय यदि आपको थोड़ा डर नहीं लगता तो या तो आप बहुत धनवान हैं या फिर आपने जुये के खेल को अच्छी तरह समझा नहीं है क्योंकि अब आगे के ५ संकेत गंभीरता की सीढ़ियों पर चढ़ते हैं : जुआ खेलने की सीमा छुपाने के लिये झूठ बोलना, जुआ न खेलने के इरादे में असफल प्रयास, परिवार या मित्रों के सामने नुकसान का पैसा अदा करने के लिये अपील ,परिवार का प्रेम या नौकरी पर आँच आने पर भी जुआ न छोड़ पाना और अंत में पैसा पाने के लिये अपराध। इन संकेतों से इतना तय है कि जुये के लिये स्त्री को दाव पर लगाने का काम केवल युधिष्ठिर ने नहीं किया था, इसमें कंगाल होने वाला प्रत्येक व्यक्ति परोक्ष रूप से स्वयं को तथा अपने परिवार को दाव पर लगा देता है। यह एक ऐसी समस्या है जो अमेरिका या विश्व के वित्तिय ढांचे के लुढ़कने के साथ भी नहीं लुढ़कती बल्कि ज्यादा बढ़ती है। जब बेरोजगारी भी गंभीर जुआरी का रास्ता नहीं बदल सकती तो फिर और क्या समाधान हो सकता है? आस्ट्रेलिया में २.३% जनता गंभीर जुये की लत में बुरी फँसी हुई है और इस प्रकार उनके परिवार सहित ३३ लाख लोग प्रभावित हैं। इसमें अंतिम परिणति आत्महत्या तक भी पहुँच जाती है। आत्महत्या के अन्य कारणों के साथ गंभीर जुआ भी अपने आप में एक मुख्य मुद्दा बनता है।
इस स्थिति की तुलना में भारत का हाल ऐसा है कि वहाँ लोटरी और घुड़दौड़ के अलावा सभी प्रकार के जुये अवैध हैं और केवल गोवा और सिक्किम के राज्य ’ओनलाइन जुआ’ खेलने की इज़ाजत देते है। अवैध घोषित कर यह मान लेना बड़ा सुखद लगता है कि इससे रोकथाम हो जाती होगी पर इसके अभिशाप से प्रभावित लोगों के आँकड़े न मिलने की स्थिति में अन्दाज इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत में प्रतिवर्ष लगभग ३० अरब डालर का जुआ वैध तरीके से खेला जाता है और अलग से लगभग उतना अवैध तरीकों से भी। आस्ट्रेलिया में कुल १२८ अरब डालर का जुआ खेला जाता है पर जीतने की लालच जुआरियों के लिये महत्वपूर्ण है अत: एक बहुत बड़ा हिस्सा जीतने वालों दे दिया जाता है। इस उद्योग के मालिकों का दावा है कि इसमे से १९ अरब डालर निकाल कर शेष हिस्सा खेलने वालों को जीत के तौर पर वापस दिया जाता है।
भारत हो या आस्ट्रेलिया या फिर कोई भी देश हो, वहाँ के सभी गंभीर जुआरियों का नैतिक उत्तरदाइत्व जुये के उद्योग-मालिकों पर भी जाता है। है। कहने के लिये कुछ केसिनो और लोटरी-प्रोग्राम के मालिक ऐसा प्रावधान रखते हैं कि गंभीर जुआरी होश में होने पर आवेदन कर सकें कि उनके जुआ खेलने के अधिकार छीन लिये जायें। लोटरी-प्रोग्राम में ऐसे लोगों को जीतने पर भी पैसा न मिलने का प्रावधान रखा जाता है जिससे वे जुआ खेलने के लिये हतोत्साहित होते रहें। इतना सब होने के बाद भी वास्तविकता यह है कि जुआरी स्वयं फिर से जुआ खेलने चले जाते हैं। मुश्किल यह रहती है कि सुरक्षा-कर्मी इन्हे भगाने के लिये पहचान पाने में असमर्थ होते हैं।
आस्ट्रेलिया की प्रधान मन्त्री जुलिया गिलार्ड का प्रस्ताव है कि तीव्र गति से खेली जाने वाली पोकर मशीनों पर खेलने से पहले रकम की सीमा घोषित करना आवश्यक करार दिया जाय जिससे ग्राहक को एक दिन में उतनी राशी से ज्यादा की हानी न हो। जब कि ग्रीन पार्टी का प्रस्ताव है कि ऐसी मशीनो पर एक बार में एक डालर खेलने की सीमा निर्धारित की जाय। क्योंकि इस तरह एक-एक डालर करके १२० डालर हारने में ही एक घंटा लग जाता है। पर यह तो बड़ी ज़्यादती है! ऐसे तो जिन्दगी भर की कमाई लुटाने में कितना वक्त लग जायगा ! जुये के मालिक इन दोनो प्रस्तावों का डट कर विरोध कर रहे हैं; वे जानते हैं कि उन्हें असली आमदनी गंभीर जुआरियों से होती है और इनकी तकलीफों को देख कर घोड़ा अगर घास से यारी करले तो फिर खायेगा क्या?
मनोवैज्ञानिक कहते हैं जुआ खेलना एक आंतरिक रुझान है। अपना प्रिय तरीका न मिलने पर ये जुआरी कोई भी तरीका इस्तेमाल कर लेते हैं। गंभीर जुआरी हमेशा तीव्र गति से हारने-जीतने वाले खेल पसंद करते हैं तथा इनके दैनिक व्यवहार से पत्नी या घरवालों को ऐसा लगता है कि वे ड्रग आदि की समस्या में फँस गये हैं। ऐसे जुआरियों को कौन समझाये कि उन्हें डॉक्टर या सलाहकारों की मदद लेनी चाहिये या कि ATM पर पैसा निकाल सकने की सीमा कम कर देनी चाहिये और कम्प्यूटर पर जुआ खेलने की सुविधा को अवरोधित कर देनी चाहिये। उनकी झिझक मिटाने के लिये ’गेंबलिंग एनोनिमस’ व हेल्पलाइन हर तरह से मदद देने के लिये तैयार भी होते हैं पर मदद चाहने वाला फोन पर अपना मुँह तो खोले।
वैज्ञानिक कहते हैं कि सेरोटोनिन की कमी से व्यक्ति में जुए का नशा सा हो जाता है और वह उसकी बाध्यता का शिकार हो जाता है पर जैसा कि उपर लिखा है मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि यह एक आन्तरिक झुकाव है जो किसी भी शर्त पर जुआरी को खेलने के लिये मजबूर करता है। इस पर पदार्थवादी कहेगा कि सेरोटोनिन नामक रासायनिक पदार्थ में ऐसी शक्ति है जो व्यक्ति के अंतस में जुये की रूझान को कम करती है पर ’चेतनावादी’ द्रष्टिकोण से यह पदार्थ नहीं केवल रूझान महत्वपूर्ण है और यही रूझान अपने अस्तित्व के लिये सेरोटोनिन कह लो या भले ही “सोरी, टोनी ! ” कह लो; कुछ भी उटपटांग नाम के रासायनिक पदार्थ को कम कर दे या उसका निर्माण कर ले तो इसमें आश्चर्य क्या है? सारी इस दार्शनिक भूलभूलैया से उपर उठ कर क्यों न हम ऐसा सोचें कि पदार्थ और चेतना दोनो आपस में हाथ में हाथ मिला कर चलते हैं। सवाल इस बीमारी का है और यह बीमारी किसी एक जाती या एक सामाजिक इकाई पर विशेष रूप से तो वार करती नहीं तथा धनी निर्धन, पुरूष-स्त्री या छोटे बड़े में फर्क किये बिना हमला करती है अत: किसी एक टोली पर अधिक ध्यान देकर इस समस्या को सुलझाया नहीं जा सकता। काश ! ये जुआरी किन हब्बार्ड की सलाह को ठीक से समझ पाते कि यदि पैसा डबल करना है तो सही तरीका यही है कि नोट को बीच में से मोड़ कर उसे जेब में रख लिया जाय।