ओज़ी स्टाइल में विनोद – हरिहर झा
ऑस्ट्रेलिया के लोगों का हास्य और विनोद इतना अज़ीब और अनोखा है जिसका जवाब नहीं । बील लीक को जब पता चला कि उसका दोस्त किसी दुर्घटना में जख़्मी हो गया है और उसका दाहिने पैर का अंगुठा कट गया है तो सामान्यतया वह फूलों का गुलदस्ता व “जल्दी अच्छे हो जाओ” का कार्ड दे सकता था । पर नहीं, उसने चमड़ी की पट्टी पर एक नकली अंगूठा लगाया और वहाँ पर लिख दिया “यहाँ से चिपकाईये” । अन्दाज़ लगाइये दोनो में कितनी गहरी दोस्ती होगी और यहाँ विनोद की कौनसी सीमा होगी जिसे भद्दा मज़ाक नहीं माना जाता । आप इसे क्या समझेंगे? कि यह अपने मित्र को दुख में चिढ़ाने की कोई तरकीब है या कि दोनो के अचेतन मन में दुश्मनी का भाव है? या फिर क्या इनका रिश्ता दोस्ती और खलनायकी की गुत्थमगुत्थी में उलझा हुआ है? आप अर्थ लगाते रहिये पर ऑस्ट्रेलिया में दोस्ती की ऐसी कईं वारदातों में पाया गया है कि विनोद में बड़ी ईमानदारी होती है। इसमें ईर्ष्या या व्यंग्य का पुट नहीं होता बल्कि कोई कड़वी लगने वाली मजाक यह साबित करती है कि मज़ाक करने वाला दोस्ती के बन्धन को तगड़ा करना चाहता है।
शायद यहाँ ऐसा इसलिये होता है कि ऐतिहासिक तौर पर निर्दयी प्राकृतिक वातावरण के आघात सहने के लिये क्रूर मज़ाक के तरीके जैसे लोगों के ज़हन में घुस गये हैं। आप इसे क्या कहेंगे कि यहाँ का प्रधान मन्त्री किसी समुद्र में तैरते हुये सदा के लिये गुम हो जाता है कुछ पता नहीं चलता; यह १९६७ की बात है और बाद में वहाँ पर बनाये गये एक स्विमींग पूल का नाम उसके नाम पर रखा जाता है ! जीवन की सच्चाइयों से मुँह न फेरने की जैसे कसम खा ली हो। मजे की बात यह है कि यहाँ नैतिकता की खोखली और उँची उँची बात करने वालों की बहुत ‘उड़ाई जाती है‘। १८३२ में तास्मानियां राज्य के राजप्रमुख ने स्त्री-अपराधियों को एक सभा में आदर्श और अच्छाइयों की बात की तो कुछ लम्बी चल गई। इस पर लगभग तीन सौ स्त्रियों ने उठ कर अपने अपने वस्त्र निकाल दिये और नग्न देह में ही हाथ उठा उठा कर नैतिकता के धरातल से निकली बातों की मिट्टी पलिद कर डाली। स्टेज पर बैठी स्त्रियां भी अपनी हँसी न रोक पाई।
पश्चिमी समाज में ऑस्ट्रेलिया की मज़ाक बहुत उड़ाई जाती है और इसका उल्टा भी बहुत होता है। किवी ( न्यूज़ीलेंड का व्यक्ति ) और पोमी (याने ब्रिटेन का व्यक्ति) की मज़ाक करना यहॉ फ़ैशन सा है। यह बात भारत में सरदार के चुटकुलों के समकक्ष है । न्यूज़ीलेंड में भेड़ों की बहुतायत होने से भेड़ें कहीं न कहीं मज़ाक में आ घुसती हैं और किसी पोमी का अभिवादन करने के बाद सभा में परिचय दे कर हिदायत दी जाती है कि अपना पॉकिट संभाल कर रखें क्यों कि यहाँ एक पोमी प्रविष्ट हो चुका है ! बीयर मांगने के लिये कहा जाता है कि मेरा गला एक पोमी के टॉवेल की तरह सूख गया है और कहने का अर्थ यह कि पोमी को नहाना अच्छा नहीं लगता । यहाँ की प्रसिद्ध फ़िल्म “क्रोकोडाईल डंडी” में अमेरिकन कल्चर का अच्छा मज़ाक उडाया है और साथ ही इस पर कि वे ऑस्टेलिया को कैसी नज़र से देखते हैं।
यहाँ की हर फिल्म में एक गवांर विदूषक होता है और रेडियो स्टेशन पर विनोदपूर्ण कार्यक्रमों की भरमार होती है – ऑफीस आने-जाने वाले कार-चालकों को रिझाने के लिए | शायद ऐसे कार्यक्रमों से कोई परिचित न हों – आप किसी चीज या किसी पालतू जानवर के दीवाने हैं तो रेडीयो स्टेशन का विदूषक आप को प्रेंक-कॉल करता है – आपके ही भाई-बहन या परिवार के किसी सदस्य के आवेदन पर। अज़ीब से हालात में आपके जवाबों पर उस चैनल के श्रोता हँसी के ठहाके लगाते हैं और आपको पता भी अंत में ही चलता है। ऐसे कार्यक्रमों में ओज़ी विनोद की विशिष्ट छाप द्रष्टिगोचर होती है। कहना न होगा कुछ वर्ष पहले ब्रिटेन के एडिन्बर्ग फ्रिन्ज के कार्यक्रम में ऑस्ट्रेलिया के चुटकुले “श्रेष्ठ विनोद” की लिस्ट में पाये गये जिसमें टिम वाईन का यह कथन बहुत प्रशंसित हुआ “मैं अपने जीवन के सबसे बड़े और अद्वितिय अवकाश पर गया हुआ था। अब क्या बोलूं, फिर से ऐसा नहीं करूंगा।“
पहली अप्रेल के आसपास से तीन सप्ताह तक “मेलबर्न अंतरराष्ट्रीय कॉमेडी उत्सव” मनाया जाता है जो विश्व के कॉमेडी उत्सवों में तीसरे स्थान पर गीना जाता है। इस भव्य और विशाल उत्सव का स्थानीय उत्सव जो पूरे साल चलते रहते हैं उस पर दुष्प्रभाव यह पड़ता है कि दर्शक इन छोटे उत्सवों की ओर ध्यान नहीं दे पाते फिर भी बहुत कम स्थानीय उत्सव होंगे जो बन्द होने की स्थिति में आगये।
खुद पर ही मज़ाक करने का यहाँ फ़ैशन है; इसका कारण है – यहाँ ब्रिटेन से आये पहली बार बसने वाले अपराधी जिस पीड़ा से गुजरे इसके कारण वे पुलिस को भी हँसा पाने में समर्थ थे क्योंकि जेलर की एक हँसी कैदी को फांसी के फन्दे से बचा सकती थी। एक हास्य अभिनेता प्राय: अपनी विकलांगता को ही मज़ाक का निशाना बनाता है। वह किसी बहुत ही सुन्दर स्त्री के प्रेम में पड़ जाता है पर करे क्या? फिर वह उस स्त्री का ही दोष निकालता है कि उसकी चाल में लड़खड़ाहट जैसा कुछ नहीं है ! यह कथ्य हास्य के साथ साथ हृदय में टीस भी पैदा करता है और यह सोंचने को मजबूर करता है कि कभी कभार हमें विकलांगो के नजरिये से भी दुनिया देख लेनी चाहिये।
आगे चल कर मज़ाक बड़े सूखे और रौब जताने के विरोध में चलते रहे। सूखे मज़ाक इस तौर पर कि शायद आप आशय न समझ पायें और समझ गये तो हँसी के बदले मुस्कान ही दे पाये पर उसकी गहराई अन्दरूनी होगी जैसे किसी टूरिस्ट ने ऑस्ट्रेलिया के अधिकारियों को पूछा कि क्या यहाँ पर मैं हर जगह अँगरेज़ी में बात कर सकता हूँ तो जवाब मिला कि हाँ; पर उसके लिये आपको अँगरेज़ी सीखनी होगी। इसके बाद कईं ऐसे कईं सवालों के मज़ाकिया जवाब उन अधिकारियों ने अपनी टूरिस्ट वेब-साईट पर लगाये । जैसे कि
“क्या यहाँ पर क्रिसमस मनाई जाती है?”
“हाँ; पर केवल क्रिसमस आने पर”
“क्या ऑस्ट्रेलिया में सड़क पर कंगारू देखे जा सकते है?”
“इस बात पर निर्भर करता है कि आपने कितनी पी रखी है।“
“क्या ऑस्ट्रेलिया में इत्र मिलती है?”
“नहीं; हमारे शरीर से बदबू निकलती है।“
“मैं पर्थ से सीडनी तक चलना चाहता हूँ इसके लिये क्या मैं रेल की पटरी पर चल सकता हूँ?”
“हाँ क्यों नहीं ! अपने साथ ढेर सारा पानी लीजिये । बस यह केवल तीन हजार मील दूर है।“
“टी. वी पर ऑस्ट्रेलिया में कभी बरसात नहीं देखी जाती तो वहाँ पेड़ कैसे उगते है?”
“हम सभी पेड़ों का आयात करते हैं और बाद में उसके चारों तरफ़ बैठ कर उन्हें मरते हुये देखते हैं।“
टी. वी. और बीयर की लत से घिरे आधुनिक समाज के आलसी जीवन पर यह व्यंग्य देखिये – एक पति ने अपनी पत्नी से कहा “प्रिये, कभी तुझे लगे कि मैं इतना बीमार हूँ कि बस मशीन के सहारे ज़िन्दा रह पाता हूँ तो तू झटपट मशीन का प्लग निकाल लेना और आस पास की जो बोतले मुझे चढ़ाई जाने वाली हों उन्हे उठा कर फैंक देना ।“
पत्नी ने उठ कर टी. वी. का प्लग निकाल लिया और बीयर की सभी बोतले फैंक दी।
जीवन की गंभीरता को सहज द्रष्टि से नया आयाम दे देना यहाँ की विशेषता है जिसका एक उदाहरण काफ़ी होगा – एक मनोवैज्ञानिक ने पूछा कि “जब आपकी पत्नी रसोईघर से गुस्से में आकर चिल्लाती है तो आप कौनसी बड़ी गलती कर बैठते हैं?”
उसके बीमार का जवाब था “उसकी गोल सोने की चेन को बहुत लम्बी कर देता हूँ।“
बार-क्लब के चुटकुलों में यहाँ के उन्मुक्त समाज का प्रतिबिम्ब मिलता है पर सेक्स की तरफ़ इशारा भर करके हँसने का रिवाज़ नहीं है। मेरे एक नवागंतुक मित्र ने “बनाना इन पायजामा” टी. वी. फ़िल्म के नाम पर विरोध प्रकट किया। मैंने समझाया “रोष की कोई आवश्यकता नहीं है। यह बच्चों के लिये बनाई गई रोचक और ज्ञानवर्धक फ़िल्म है जिसे अंतरराष्ट्रिय सम्मान मिल चुका है। आप ऊटपटांग अर्थ निकालना बन्द कीजिये और पहले यह फ़िल्म देख लीजिये।“
यह कथन ऑस्ट्रेलिया में प्रसिद्ध है कि यह देश अपने आप में बहुत बड़ा मज़ाक है कि आप जिस बीच पर जाकर समुद्र की तरंगों पर सर्फ़िंग कर रहे हों वहाँ पर बड़े बड़े शार्क मौजूद हों और उसके बाद जब आप अपने घर जायं तो देखें कि आपका घर बुश फ़ायर में स्वाहा हो चुका है। बार-बार यहाँ जो “नो वरीज़” ( कोई चिन्ता नहीं ! ) कहा जाता है उसका संदर्भ इस बात से निकलता है !