रीजनल इस्पेक्टर को धर्म का उपदेश दिया
रीजनल इस्पेक्टर को धर्म का उपदेश दिया,प्रकाशनार्थ:- 29 नवम्वर पुण्यतिथि पर विशेष प्रख्यात वेद विदुषी डा सावित्री देवी शर्मा वेदाचार्या के जीवन की प्रेरणास्पद अमूल्य घटना”जब रीजनल इंस्पेक्टर को धर्म का उपदेश दिया* वेदों वेदांगों की प्रकान्ड विदुषी ,पांच विषयों में आचार्य,दो बिषय में एम ए, शतपथब्राह्मण पर पी एच डी,शपथ र्जब्राह्मण की भाष्विकार विश्व की प्रथम महिला वेदाचार्य, विश्व की प्रथम महिला वेद उपदेशिका , सम्पूर्ण देश में धर्म प्रचार डा सावित्री देवी शर्मा वेदाचार्या जी की पूण्यतिथि 29नवम्बर 2005 को सम्पूर्ण देश मैं वेद वेदांगों का प्रचार प्रसार करते व विश्व को वेदों को आत्मसात की प्रेरणा प्रदान करती हुई संसार के मोह बन्धनमुक्त हो कर परमपिता परमेश्वर की गोद में पहुंच कर मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर चिरकाल के लिये पहुंच गई। 29 नवम्बर 2005 पुण्यतिथि पर उनके जीवन की प्रेरणादायक संस्मरण समाज को नवीन ज्योति प्रदान करेगी। आर्य कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ,छपरा, विहार में प्रधानाचार्य के पद पर 1965 से 1970 तक रही , यह काल उनके जीवन का नारी शिक्षा, नारी उत्थान व समाज में नारियों का सम्मान कैसे बनाएं इस हेतु महत्त्वपूर्ण रहा। कालिज में वालिकाओं की शिक्षा के साथ वे संस्कारवान बन कर गार्गी ,अपाला, मैत्रयी जैसी विदुषियां बने, इसके लिए उन्होंने भेष-भूषा, अनुशासन, सप्ताह में एक दिन संस्कृत संम्भाषण, सप्ताह में एक दिन व्यक्तित्व विकास कार्यक्रम का आयोजन, सप्ताह में एक दिन सामुहिक वैदिक यज्ञ का आयोजन, भारतीय संस्कृति के प्रत्येक विन्दुओं को जीवन में सफलता पूर्वक अवतरित करने का आयोजन किया करती थी। इसी बीच विहार प्रान्त की तत्कालीन रीजनल इंस्पेक्टर विद्यालय का निरीक्षण करने आई, निरिक्षण करने के बाद वे सभी दृष्टि से अत्यंत प्रसन्न हुयीं, अन्त में जब प्रवंध समिति के साथ वैठक के आयोजन में उन्होंने कहा कि विहार प्रान्त का सर्वश्रेष्ठ कालेज प्रतीत हो रहा है, परन्तु कालेज की प्राचार्या कालेज में धर्म का प्रचार प्रसार अधिक करती है, हमारा देश धर्म निरपेक्ष है , ऐसा कार्य करना भारतीय संविधान में उचित नहीं है। रीजनल इंस्पेक्टर के यह वाक्य सुनकर डा सावित्री शर्मा वेदाचार्या जी ने साक्षात विद्योतमा के रुप में कहा कि आप जिस पद पर वैठी है क्या इस पद पर अधर्म का प्रचार प्रसार कर रही है? फिर क्या था उन्होंने प्रवंध समिति के सामने ४५ मिनट धर्म शब्द की व्याख्या व उपदेश प्रदान किया और कहा कि “धार्यते या सा धर्म:” धारण किया जाय उसे धर्म कहते हैं, सदाचार में जीवन का नाम धर्म है,मानव को मानव बनाने का नाम धर्म है, संस्कार वान समाज बनाने का नाम धर्म है, सम्प्रदाय,मत मतान्तर,गुरुढमवाद,हिन्दु-मुसलिम-सिख-ईसाई आदि धर्म नहीं है यह सब मत मतान्तर है,इन सब से दूर हट कर महाभारत का वह वाक्य ” आत्माना: प्रतिकूलानि परेशाम् न समाचरेत”अर्थात जो अपनी आत्मा को अच्छा नहीं लगता है वह व्यवहार दूसरों के साथ न करें उसे धर्म कहते हैं, हमारा गौरव मयी देश धर्म निरपेक्ष नहीं हो सकता है, अपितु धर्म सापेक्ष है, मत निरपेक्ष हो सकता है परन्तु धर्म निरपेक्ष नहीं हो सकता है इस प्रकार रीजनल इंस्पेक्टर को प्रवंध समिति के बीच धर्म का उपदेश प्रदान करने पर प्रवंध समिति के अध्यक्ष ने कहा कि प्रधानाचार्य वहन जी के उपदेश देने पर घबडाए और कहा कि विद्यालय की ग्रान्ट बन्द हो जायेगी, इस पर वेदाचार्या जी ने कहा कि यदि प्रवन्धसमिति को मेरे द्वारा धर्म का स्वरूप प्रस्तुत करने पर ग्रान्ट बन्द होने का भय है तो यह मेरा त्यागपत्र है,आप इसे स्वीकार करें, इस पर प्रवंध समिति चिन्तित हो गई और त्याग पत्र स्वीकार करने से मना कर दिया। परमविदुषी वेदाचार्या जी के धर्मबल, आत्म बल, आत्म विश्वास व विद्यालय की वालिकाओं को संस्कार वान बनाने के संकल्प का यह प्रतिफल था कि तीन महीने के बाद जब सरकार के द्वारा विद्मालय के निरिक्षण की आख्या का पत्र विद्यालय में आया ,तो उसमें लिखा था कि “विहार प्रान्त का सर्वश्रेष्ठ विद्यालय है एवं इसकी ग्रान्ट दूनी की जाती है।” विश्व विख्यात परम विदुषी के जीवन की इस अमूल्य घटना से हमको यह शिक्षा मिलती है कि” धर्मैव हतों हन्ति धर्मो रक्षति रक्षिता” अर्थात यदि जो धर्म की रक्षा करेंगे ,तो धर्म हमारी रक्षा करेगा। । डा श्वेतकेतु शर्मा, बरेली पूर्व सदस्य हिन्दी सलाहकार समिति भारत सरकार