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हिंदी की वास्तविक व वर्तमान स्थिति

करोनाकाल ने हम सभी को सोचने के अनेक अवसर दिए हैं । मैंने भी कुछ समय से एक विषय पर काफ़ी विचार किया । वह था हिंदी की वास्तविक व वर्तमान स्थिति l जो मैंने अनुभव किया शायद आप में से अधिकांश लोग उससे सहमत होंगे ।आजकल हिंदी लिखने वालों की कमी नहीं है परंतु क्या उस सामग्री को पढ़ने के लिए हमारी आने वाली पीढ़ी तैयार है ? क्या उनको हिंदी साहित्य में रुचि है ? क्या वे उसे स्वेच्छा से पढ़ना चाहते हैं ?हिंदी पत्र-पत्रिकाएँ तो हैं परंतु पाठक कितने हैं ? अपनी कविता प्रकाशित करवा लेना या एक -दो पुस्तक लिख लेने से हमारी पीढ़ी को कुछ लाभ होगा ? हिंदी मंच बहुत हैं लेकिन इन मंचों से युवा पीढ़ी कितनी जुड़ी हुई है ? उत्तम रचनाएँ हैं परंतु क्या अंग्रेज़ी जैसी प्रसिद्धता उन रचनाओं को  मिल पाती है ? शायद ना । कहतेहैं व प्रत्येक वस्तु या रीति समाप्त हो जाती है जिसे भावी पीढ़ी नहीं अपनाती और यही मुझे हिंदी का भविष्य दिखाई दे रहा है l इनके कारणों को समझेंगे तो सबसे बड़ा कारण भाषा को क्लिष्ट करना लगता है । क्या हम सरल , सहज भाषा में अपनी यह भाषा अपनी पीढ़ी को नहीं बता सकते ? आवश्यक तो नहीं हमारी भावी पीढ़ी साहित्यकारों की भाषा में ही लिखे या पढ़े , आप उनके अनुसार अपनी भाषा में परिवर्तन कीजिये अन्यथा इतने विशाल साहित्य भंडार को पढ.ने वाला कोई रहेगा ही नहीं l आप विद्यार्थियों से बात करके देखिए , अधिकांश बच्चे १० वीं की परीक्षा के बाद हिंदी नहीं चाहते । ऐसा नहीं है कि वे कहानियाँ , उपन्यास नहीं पढ़ते पर हिंदी भाषा में नहीं पढ़ना चाहते । कारण का पता लगाना कोई नहीं चाहता l साहित्यकार , कवि और लेखक लिखते हैं परंतु पाठक नहीं हैं और करोड़ों की भाषा के बारे में यह कटु सत्य है कि हिंदी की पुस्तकों के पाठक अब नाममात्र हैं l इस तथ्य को नकारना यानि हिंदी का विलुप्त हो जाना एक ही बात है । तो प्रयास करें कि अपने घर , मोहल्ले और नगर से ही सबसे हिंदी बोलने का और उसके बाद उसे पढ़ने ,पढ़ाने का अभियान आरम्भ हो ।बच्चे प्रारंभ से ही अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में पढ़ रहे हैं चलिए वह भी स्वीकार है लेकिन निज भाषा में संवाद तो बंद ना हो ,भाषा उनके लिए अपरिचित न बन जाए इसके लिए हमारी पीढ़ी ने भी अगर विचार नहीं किया तो शायद आगे विचार करने वाले बचेंगे भी नहीं l यह भय निराधार नहीं है l बेहतर है इसपर आज से ही काम  हो औरनिरंतर हो l


शालिनी वर्मा
दोहा कतर