अटूट विश्वास
अटूट विश्वास
मंजिल को ढूंढ़ने सभी
घर के तारे निकल पड़े
आंखों मे जो इक ख्वाब है
उसे पाने निकल चले
गम की अँधेरी रातों में
जलना होगा तुझे
कांटो भरी राह मे भी
चलना होगा तुझे
हिम्मत ना खोना
राह में बाधायें देखकर
मंजिल को ढूंढ़ने सभी
घर के तारे निकल पड़े ।।
स्वरचित कविता
ज्योतिका शाही सक्सेना
लखनऊ, उत्तर प्रदेश