उम्मीद
अधमरी सी उम्मीदें कभी सो न सकी इंतज़ार में
बिलख- बिलख कर रोया है मन साथी तेरे प्यार में
दूर से ही तो चाहा था तुमको
बस पास तुम्हारे ये दिल था
हम नदी के किनारे जैसे थे
मिलना भी हमारा मुश्किल था
राह भी हमारी अलग थी कभी टकराते ना बाजार में
बिलख- बिलख कर रोया है मन साथी तेरे प्यार में
रोज़ नेह की पाती लिखी तुझे
और रोज़ फाड़ कर फेंकते हैं
बच्चे सा दिल जिद करता है
बड़े यत्न से खुद को रोकते हैं
पहले ही छोड़ दिया होता , दूर तक आये बेकार में
बिलख- बिलख कर रोया है मन साथी तेरे प्यार में
ख्यालो में ऐसे बसाया तुमको
चाह के भी ना कुछ सोच सके
बांध ली आंखों पर प्रेम की पट्टी
तुम्हारे सिवा ना कुछ देख सके
इतना चाहा जिसको ,वही छोड़ गए मझधार में
बिलख- बिलख कर रोया है मन साथी तेरे प्यार में
विजय नारायण दूबे