प्रेम काव्य लेखन प्रतियोगिता (प्रेम आज-कल)
प्रेम!
आजकल प्रभावित है…
उपभोक्तावादी बाजारी संस्कृति
और फिल्मी देह बाजारी से।
फलिभूत कर्ज और उधारी से।
रोज नए फूल खिलते,
तन से तन मिलते,
कौड़ियों के भाव पर
अवसरवादी स्थापित-विस्थापित
भावनात्मक जुड़ाव है।
मादा की क्षणिक काया,
नर के पाकेट की माया,
दिल-कबड्डी बस रास आया।
नकलची ऐसा है दौर लाया,
समलिंगी-रिश्ते फैशन चले।
घर-परिवार,रिश्ते-नाते!
असुरक्षित-असहज,
असंतुलित,
काल्पनिक होकर
बन रही बीते दिनों की बातें।
चकाचौंध-महत्त्वाकांक्षाओं की
बलि वेदी पर बलवती घातें।
कचड़े की तरह फेंकने को आतुर
कहीं भी कोई स्थान नहीं,
बचपना और बुढ़ापा पाते।
गुजरती भटकाव में,
अस्त-व्यस्त दिनचर्या वाली
दिन और रातें।
पाण्डेय सरिता