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नश्वरता

अस्ताचलगामी सूर्य के अवसान पर,
मध्य में जीवन की

प्रवाहमान सरिता शान्त स्तंभित!
मूकदर्शक मैंने देखा,
उसका म्लान मुख अचंभित!
एक तरफ उन्मादी हुल्लड़बाज भीड़ थी,
भ्रमवश वासनामय अमरता की उत्तेजना में।
और नदी के दूसरे तट पर
दो-दो शवदाह कर्म की उठती
ज्वलाएँ धधकती
क्षणभंगुर नश्वरता की अलग कहानी कह रही थी।
पाण्डेय सरिता