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महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता हेतु कविता। ‘हे नारी’

हे नारी
हे नारी आपकी जिम्मेदारी, कब तक कौन निभाएगा|
ले लो हाथ में खंजर अपने, अब कोई बचाने नहीं आएगा|
लूटने से पहले तो कम से कम, दे दो जख्म इतने सारे|
कुकर्म के बाद कोई कुकर्मी, अपनों के पीछे चुप ना पाएगा|
बहुत हुआ हड्डी तुड़वाना, बहुत हुआ टेस्ट का बहाना|
न्याय वहीं पर कर लो तुम, जहां कुकर्मी की आंख उठे|
भोग दो इतने सारे खंजर, की सबूत की जरूरत ना पड़े|
जो हमारी कोख का है मोहताज, वह हम पर हाथ उठाएगा|
दिखा दो अपनी ताकत को दुर्गा फूलन बनके, अब तो जागो अब कोई बचाने नहीं आएगा|
हे नारी आपकी जिम्मेदारी, कब तक कौन उठाएगा|