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प्रेम-काव्य लेखन प्रतियोगिता

कविता   

जाने क्यों?

जाने क्यों लगता है,

भूलाने लगे हो तुम मुझको,

वक्त की गीली मिट्टी के आगोश में,

बेवजह दफन कर्नर लगे हो मुझको ,

संग तुम्हाते मैं तो चल देती,

प्रीत के दर्पण में  रच-बस कर,

दुनिया बसा लेती अपनी,

मगर वक्त के हाथों,

बार-बार छलने लगे हो मुझको,

जाने क्यों?

चलो आज फिर 

पुकार लो मुझे एक बार फिर तुम,

बहारों की सिलवटों में 

सिमटा कर मुझे 

दूर से दूरियों का एहसास

तुम मिटाने दो मुझको ,

कभी पास से गूजरों तो 

एहसास ये हो जाए,

नजर भर,धड़ी भर

दो बात हो जाए ,

मुलाकत  का दौर  जाने कब खत्म हुआ ,

इबादत की भोर से 

तुम्हारा साक्षात्कार हो जाए,

क्यों लगता है जहन को,

आजकल प्रतिद्वंदी मेरे दिल को ,

अपने दिल से तुम बनाने लगे हो मुझे |

जाने क्यों लगता है,

भूलाने लगे हो तुम मुझको,

वक्त की गीली मिट्टी के आगोश में,

बेवजह दफन कर्नर लगे हो मुझको ,

डॉ  कविता यादव