ग़ज़ल,,,,, जीवन के संदर्भ,,,,,
ग़ज़ल,,,,,
जीवन के संदर्भ बड़े गंभीर हुए।।
हम कमान पर चढ़े हुए बिष तीर हुए।।
मृगतृष्णा केभ्रम में उलझे मृग मानव।
विधवा की सूनी आंखों का नीर हुए।।
मिट्टी मोल भी कर्म नहीं बिकता अब तो।
क्रेताओं के इतने तुच्छ ज़मीर हुए।।
गीली आंखों से जब बिदा किया उसने।
आंसू उसके पैरों की ज़न्जीर हुए।।
मोह प्रभावित तुम्हें देख है मन इतना।
हम योगी के जप तप की जागीर हुए।।
अंतस में तुम जबसे सरल के आ बैठे।
भाव हृदय के तुलसी सूर कबीर हुए।।
बृंदावन राय सरल सागर एमपी भारत
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18/1/2021