हिन्दी : भारत का अभिमान
हिन्दी : भारत का अभिमान
ध्वज हिंदी का चूमता आसमान है
अजय हिंदी यह भाषा महान है,
पाणिनी की संस्कृत जन्मदात्री,
पाली प्राकृत अपभ्रंश सखी समान है,
देवनागरी लिपि ,शब्दों का वरदान है।
हम हिंद हिंदी की संतान है,
नवजागृत भोर सी हिंदी, हर और प्रकाशमान है।
कमल, सरोज, पंकज, नीरज, जलज,
रवि, दिनकर, आदित्य ,सूर्य, भानु, प्रभाकर,
एक शब्द के कई उपनाम है।
” हाथ कंगन को आरसी क्या पढ़े लिखे को फारसी क्या, बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद,अपने मुंह मियां मिट्ठू, नाच ना जाने आंगन टेढ़ा। “
हिंदी मुहावरों में भी बलवान है ,
भारत की पावन भूमि में हिंदी मजबूत वृक्ष समान है।
साहित्य के कोरे कागज पर हिंदी कलम के अंकित अद्भुत निशान है ।
प्रेमचंद्र का निर्णय इसमें, जयशंकर के चंद्रगुप्त बलवान है, महादेवी की नायिका सर्वशक्तिमान है।
हरिवंश की मधुशाला , गोस्वामी के राम भी इसमें विद्यमान है।
चहुँ दिशाओं में फैली हिंदी,
मातृत्व में हिंदी, हिंदी जन उल्लास है
काली, रणचंडी, हिंदी शंखनाद है ।
शीश नवाकर मेरा हिंदी को प्रणाम है ।
हिन्दी दिवस के लिए मेरी रचना। यह मेरी मौलिक रचना है।