1

शुभा शुक्ला निशा की कविता – ‘नारी’

जिस स्त्री से जीवन पाते हैं उस पर ही कलंक लगाते हैं
सारे ग़लत काम स्वयं करते और नारी पर ही दोष लगाते हैं
समझ सको तो समझो नारी जिसने तुमपे खुशियां वारी
तुम्हारे जन्म पे मिठाईयां बांटी अपने समय तानो की बौछार ही आंकी
नो महीने गर्भवती रहकर घर सारे काम सम्हाले
पर नारी ने ही सास ननद बन के उसपे ही अत्याचार कर डाले
कैसे जीती और क्योंकर जीती इतने जुल्म वो सहती जाती
बस एक अपने कोख में पलती जिंदगी के लिए हंस जीती जाती
पर वह अपनी किस्मत से हारी जिनकी उंगली उसने कभी ना छोड़ी
आज उन्हीं युवा होती औलादों ने उसकी सारी उम्मीदें तोड़ी
धरती हम सब की माता है जननी भी हमारी जन्मदाता है
मान सम्मान सब करलो उसका उससे ही जीवन आता जाता है
आखिर क्यों होता आया हमेशा से स्त्री पर इतना अत्याचार
क्यों वो सबकुछ सहने पर भी कहलाती बेकार और लाचार
श्रष्टि का संचार उसी से दुनिया औ परिवार उसके सहभाग से
फिर भी क्यों समझी जाती शून्य वो इस पुरुष प्रधान समाज में
मै ये नहीं कहती की नारी जाति की किस्मत ही खराब है
पर जो ना उठा पाए आवाज अपने हक़ में उसकी दुनिया बर्बाद है
बहुत कुछ तो जीत गई इस मान सम्मान की जंग को
पर कुछ अभी भी घुट रहीं पी कर अपमान के दंश को
आज भी कुछ बहने हमारी जिन्दा जलाई जा रही
पल रही कोख में बेटी की आज भी सांसे बुझाई जा रही
नहीं होती सबमें हिम्मत आवाज उठाने की अपने लिए
डर डर के जीती जीवन अपना कोई साथी नहीं सम्हालने के लिए
आदि काल से तो हम नारी कभी भी इतनी कमजोर नही रही
कई महिलाएं वीरता के लिए संपूर्ण विश्व में
मशहूर रही
अंग्रेजो के समय भी देखिए नारी शक्ति का फैला परचम था
लक्ष्मी बाई , सरोजिनी नायडू कस्तूरबा गांधी , विजया लक्ष्मी में कितना दम था
जब हमे भी स्वतंत्र होना था तब हमे घूंघट में कैद किया
और पुरुष वर्ग ने नारी जाति पर जाने क्यों कर आधिपत्य किया
नारी शक्ति है जीवनदायनी उसे अपना अस्तित्व समझना होगा
पुरुषों के आधीन नहीं वो उसे अपना व्यक्तित्व बदलना होगा

शुभा शुक्ला निशा
रायपुर छत्तीसगढ़