कोरोना काल अवसर या अभिशाप
कोरोना काल अवसर या अभिशाप
माना कि करोना काल ने कहर है बरसाया।
न जाने कितने लोगों को घर पर बैठाया,
कई लोगों को अपनों से बिछड़ाया, उन्हें रुलाया,
फिर भी यह काल अभिशाप नहीं, यह विचार आया
कि यह काल तो खुदा की नियामक बनकर आया।
कोरोना काल ने हमें फिर से जीना सीखाया,
हमें पशुता छोड़ मानव का पाठ पढ़ाया,
प्रकृति को और प्रदुषित होने से बचाया,
व्यस्त माता-पिता को अपने बच्चों से रु-ब-रु करवाया
परदेशी बच्चों ने भी अपने माता-पिता का हृदय जुड़ाया।
भारतीय संस्कृति को उजागर करवाया,
भागते हुए मानव के जीवन में ठहराव लाया,
साथ-साथ खाना, मिलकर काम करना सिखाया,
तू-तू-मैं-मैं से ‘हम’ बनना सिखाया,
और मैं क्या कहूँ-क्या-क्या बदलाव आया?
इस अवसर को हाथ से नहीं है जाने देना,
दक्ष व्यपारी की तरह भरपूर लाभ है उठाना,
आर्थिक मार तो फिर भी कर लेंगे बर्दाश्त,
लेकिन मानसिक विकार का नही है कोई उपाय,
इसलिए तो कहती हूँ, तोल-मोल कर जनाब
कोरोना काल अभिशाप नहीं, यह है वरदान॥
थोड़ी-सी सावधानी और सजगता की है जरुरत,
धैर्य व साहस की परीक्षा का है यह वक्त,
सहानुभूति व मानवता जगाने की है जरुरत,
एक दिन ऎसा भी आएगा जब हम सब
कहेंगे कोरोना काल था अवसर, नहीं था अभिशाप॥