प्रभांशु की नई कविता कूड़े वाला आदमी
वह आदमी
निराश नही है
अपनी जिन्दगी से
जो सड़क किनारे
कूड़े को उठाता हुआ
अपनी प्यासी आंखो से
कुछ दूढ़ता हुआ
फिर सड़क पर चलते
हंसते खिलखिलाते
धूलउड़ाते लोगों को टकटकी
निगाह से देखता
फिर कुछ सोचकर
नजरें दुबारा काम पर टिका लेता ।
शायद ये सब मेरे लिए नही
वह सोचता है
अखिर कमल को हर बार
कचरा क्यों मिलता है
वह आदमी
दौड़ के उसे उठाता
जैसे ईश्वर का प्रसाद मिल गया हो
जैसे तालाब किनारे
कमल खिल गया हो।
फिर सड़क पर लोग नही है,
प्लास्टिक के थैले नही है
और चल देता है
दूसरे कूड़े की ओर
शायद अपनी किस्मत को कोसते हुए
बस यही है मेरी जिन्दगी।
मो०-9235795931,