न्यू मीडिया में हिन्दी भाषा, साहित्य एवं शोध को समर्पित अव्यावसायिक अकादमिक अभिक्रम

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

सृजन ऑस्ट्रेलिया | SRIJAN AUSTRALIA

विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया से प्रकाशित, विशेषज्ञों द्वारा समीक्षित, बहुविषयक अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिका

A Multidisciplinary Peer Reviewed International E-Journal Published from, Victoria, Australia

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला

सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

युवाओं को दिशाहीन करती नशे की आदत

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कुछ समय पूर्व फ़िल्म अभिनेता सुशांत सिंह की आत्महत्या के मामले की जाँच में नए तथ्यों के सामने आने से सारे देश को झकझोर दिया है।कल्पना लोक,सपनो के संसार मे नशा का मकड़जाल सभी को हतभ्रत करता है इसमे अभिनेत्रियों के नामों ने चिंता की लकीरों को गहरा कर दिया ये सही है कि सच्चाई तो जांच के बाद ही सामने आएगी परन्तु ये घटनाक्रम हमे अपने गिरेवान में झांकने को मजबूर जरूर करता है।दिखावे वाली सभ्यता ने हमारे देश किस तरह अपनी ओर आकर्षित किया, इसकी ओर देश के युवा सबसे अधिक आकर्षित हुए है, और अपनी संस्कृति छोड़ इसी संस्कृति के पीछे भाग रहें है।नशाखोरी इसी अंधानुकरण का परिणाम है।हमारा देश युवाओं का देश है इन्ही के भरोसे वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनने का ख्वाब था। लेकिन जिस युवा पीढ़ी के बल पर देश विकास के पथ पर दौड़ने का दंभ भर रहा है, वह दुर्भाग्य से दिन पे दिन नशे की गिरफ्त में आ रही है।ड्रगवार डिस्टार्सन और वर्डोमीटर की रिपोर्ट के अनुसार नशे का व्यापार 30 लाख करोड़ से अधिक का है।अकेले हमारे देश की 20 प्रतिशत आबादी इसकी गिरफ्त में है।नेशनल ड्रग डिपेंडेंट ट्रीटमेंट(एनडीडीटी) एम्स की 2019 की रिपोर्ट बताती है कि देश मे ही 16 करोड़ लोग शराब का नशा करते है,इसमे बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल है।ग्लोबल वर्डन और डीजीज स्टडी 2017 के आंकड़े बताते है कि दुनियाभर में 7.5 करोड़ से भी अधिक लोग अवैध ड्रग के कारण अकाल मौत मरे इनमें 22 हजार तो देश के लोग भी सम्मिलित है। इस लत के शिकार सभी वर्ग व आयु के लोग है।एक सर्वे के अनुसार देश में गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लोगो मे लगभग 37 प्रतिशत नशे का सेवन करते हैं। इनमें वो लोग भी शामिल हैं जिनके घरों में दो वक्त की रोटी भी सुलभ नहीं है।उनके मुखिया मजदूरी के रूप में जो कमा कर लाते हैं वे शराब पर फूंक डालते हैं।अब ये समस्या देश के किसी राज्य तक सीमित नही रही एक राज्य के बारे में वहा के सामाजिक सुरक्षा विभाग की रिपोर्ट बताती है की बीते साल के अंत में राज्य के गांवों में करीब 67 फीसदी घर ऐसे हैं, जहां कम से कम एक व्यक्ति नशे की चपेट में है। इसके अलावा हर हफ्ते कम से कम एक व्यक्ति की ड्रग ओवरडोज के कारण मौत होती है।ऐसे ही हर राज्य को ये दानव अपने आगोश में लेता जा रहा है। नशा लेने में इजेक्शन के उपयोग के कारण लगातार एचआईवी और हिपेटाइटिस के प्रकरण भी बढ़ रहें है। समय रहते समाज को जागरूक बनना होगा तभी समाज को इस महामारी से बचाया जा सकेगा।

(लेखक राज्यपाल पुरस्कार प्राप्त शिक्षक है।)

Last Updated on November 6, 2020 by 1982madhavpatel

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