पोपट भावराव बिरारी
सहायक प्राध्यापक
कर्मवीर शांतारामबापू कोंडाजी वावरे कला,
विज्ञान व वाणिज्य महाविद्यालय सिडको, नासिक
ईमेल – popatbirari@gmail.com, मो. – 9850391121
प्रस्तावना
विश्व में अनेक भाषाएं बोली जाती हैं। व्यक्ती अपनी बात दूसरों तक पहुंचने के लिए भाषा का उपयोग करता है। जब वह एक स्थान से दूसरे स्थान जाता है तो वह अपने साथ अपनी भाषा भी ले जाता है। ऐसे बहुत सारे लोग व्यापार, नौकरी के उद्देश्य से दूसरे देशों में रह रहें है। ऐसे ही भारतीय वंश के लोग अन्य देशों में निवास कर रहें हैं और वहां अपने देश की भाषा में संवाद कर रहें हैं। जब वह अपने देश की भाषा का प्रयोग करते हैं तो उसके साथ-साथ वह अपनी संस्कति का भी प्रभाव छोड़ते हैं। भारत देश की राष्ट्रिय भाषा हिंदी का प्रचार एवं प्रसार करने में प्रवासी भारतियों की भूमिका का भी महत्वपूर्ण हैं। हिंदी का दायरा व्यापक रूप ले रहा हैं। आज वह विश्व में दो नंबर की भाषा बन गई हैं। अंतरराष्ट्रीय पटल पर हिंदी आज विश्व की प्रतिष्ठित भाषा बन गई है। साथ ही विश्व में बसे हुए भारतियों की भी संपर्क भाषा है। प्रवासी भारतीय तो उसे अपनी अस्मिता का प्रतीक मानते है। विश्व में हिंदी तकनीकी एवं परिभाषिक शब्दकोश आदि का विकास हो रहा है।
विश्व भाषा : हिंदी
विश्व के प्रवासी भारतीय बहुत सारे देशों में भारतीय संस्कृति, धर्म, दर्शन तथा साहित्य के प्रति रुचि दिखा रहें हैं। उनकी हिंदी के प्रति निष्ठा सराहनीय है। भारत की लोक संस्कृति, साहित्य और कला की विरासत को उन देशों में सिर्फ संजोकर ही नहीं रखा बल्कि इसके प्रचार-प्रसार में भी अपना योगदान दिया हैं। प्रवासी बंधुओं ने अपनी सक्रियता दिखाई है। अपनी जमीन से जुडे रहने की कोशिश भारतीयों के लिए प्रेरक भूमिका अदा कर रही है। भूमंडलीकरण के दौर में हिंदी के विस्तार की संभावनाएं अधिक बढ़ गई है तो दूसरी ओर चुनौतियां भी है। साहित्य सदैव मनुष्य और मनुष्य की सामाजिकता के संघर्षों के इतिहास को नए रूपों में अभिव्यक्ति है। वेद-उपनिषद, जैन-बौद्ध आदि साहित्यिक परंपराएं किसी न किसी रूप में विश्व के साहित्य कला को प्रभावित कर रहीं हैं। कुछ विदेशी विद्वान भारतियों से प्रभावित है तो कुछ साहित्य विद्वान विदेशी साहित्यकारों और उनके दर्शन से भी प्रभावित हैं। अतः जो विदेशों में साहित्य सृजन हो रहा हैं उसमें भारतीय विचारधारा के साथ प्रवासी सोच हैं।
भूमंडलीकरण ने समग्र विश्व को विश्व ग्राम में परिवर्तित किया, जहां सूचना प्राद्यौगिकी के बढ़ते कदमों के साथ सारी जानकारी एक क्षण में प्राप्त हो जाती हैं। हिंदी भाषा वैश्विक स्तर पर प्रगति की दिशा में आगे बढ़ रही है। डॉ.विजय राघव रेड्डी का कथन है कि “विश्व भाषा के रूप में हिंदी एवं राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी की प्रतिष्ठा को आज के इस भूमंडलीकरण और उदारीकरण के युग में अलग-अलग न मानते हुए अन्योंयाश्रित मानकर हमें ठोस कदम उठाने हैं।”1 प्रवासी भारतीयों के लिए हिंदी इस संस्कृति का महत्वपूर्ण संचार वाहक है। अतः हिंदी जरूरी है। हिंदी के प्रचार-प्रसार के अनेक कारण है। विश्व पत्रिका में भी हिंदी भाषा अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। कविता, कहानी जैसी मौलिक विधाओं के साथ अनूदित सामग्री एवं विज्ञापन संबंधी सूचनाएं भी इनमें छपती है। डॉ. बालशौरि रेड्डी का कथन है कि ‘भारतीय संस्कृति को दुनिया के कोने कोने में पहुंचने में हिंदी विद्वानों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है और दे रहें हैं।’ विश्व मंच पर हिंदी की भूमिका संगीत और फिल्मों से भी जुड़ी हुई है। हिंदी की फिल्में, गाने, टी. वी. कार्यक्रमों ने विश्व में हिंदी को लोकप्रियता देने का महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
अंतर्राष्ट्रीय पटल पर हिंदी भाषा विश्व में प्रतिष्ठा पा रही है। विश्व के विभिन्न देशों में बसे भारतीयों की वह संपर्क भाषा है। सुरेशचंद्र शुक्ल का कथन है कि “विश्व में कोई ऐसी भाषा नहीं जिसमें वर्गगत, शैलीगत भिन्नता न हो। हिंदी भाषा एक समर्थ, धनी और विकसित भाषा है जिसमें अनेक भाषाओं के शब्द, उक्तियां और बोलियों के प्रयोग को समाहित किया गया है।”2 प्रवासी भारतीय हिंदी को भारतीय का अस्मिता का प्रतीक मानकर इसकी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए निरंतर कार्यरत है लेकिन इसकी भी आवश्यकता है कि विदेशों में हिंदी शिक्षण का मूल्यांकन समय-समय पर हो और इसके विश्वव्यापी प्रचार के लिए तकनीकी एवं पारिभाषिक कोश तथा संदर्भ ग्रंथ सरलता से प्राप्त हो। साथ ही साथ हिंदी भाषा की व्यवहारिक शैली में भी सरलता लानी चाहिए। हमें सदा इस विषय को केंद्र में रखना चाहिए कि हम अपनी भाषा को उस समाज के बीच में ले जा रहे हैं जो बिल्कुल इस भाषा से संबंध नहीं है। उनकी सुविधा के लिए सरल शब्दों का ही प्रयोग उचित होगा। इतना ही नहीं उनकी भाषा एवं संस्कृति का भी आदर हमें करना चाहिए। वैश्विक स्तर पर हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में एक और रुकावट है आर्थिक विषमता। हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए आवश्यक आर्थिक संसाधनों का होना आवश्यक है। इसके लिए की जानेवाली आवश्यक पूंजी भी और बढ़ानी चाहिए। भूमंडलीकरण में हिंदी भाषा को अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है; तो तकनीकी एवं प्रौद्योगिकी दृष्टि से उसे स्वयं को सक्षम सिद्ध करना है। इसका प्रचार-प्रसार सही ढंग से विश्वविद्यालय एवं विविध प्रकार की शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से संपन्न हो सकता है। विश्व के कई देशों में व्यापक रूप से हिंदी भाषा का प्रचार हो रहा है। आज विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा का अधिक प्रयोग हो रहा है।
विश्व में हिंदी बोलनेवालों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। हिंदी चीनी भाषा के बाद विश्व की दूसरे स्थान की भाषा है। एक शोध के अनुसार विश्व में सबसे अधिक बोलनेवाले और समझनेवाले की भाषा हिंदी है। लक्ष्मीकांत वर्मा का कथन है कि “हिंदी को एक विशाल जनसमूह के राजकाज और बातचीत को चलाना नहीं है, बल्कि उसी को शिक्षा का माध्यम बनाना है।”3 भारत के अलावा हिंदी बोलनेवाले और समझनेवाले सुरिनाम, त्रिनीडाड, दुबई, फिजी, मॉरीशस, कुबैत, संयुक्त अरब अमीरात, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, रूस, सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका आदि देशों में मिलते हैं। विदेशों के अनेक देशों के विश्वविद्यालयों में हिंदी एक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है। आज हिंदी भाषा देश के छोटे बड़े उद्यामकर्ता एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियां अंग्रेजी के साथ हिंदी को भी अपने विज्ञापनों को साधन समझ रही हैं। हिंदी भाषी राज्यों में शहरी बाजार के साथ-साथ ग्रामीण बाजारों में भी दिखाई देती है। हिंदी में स्थानीय संभावनाओं का विस्फोट हुआ है, इसे इनकार नहीं किया जा सकता। जहां हिंदी में स्थानीय संभावनाओं का विस्फोट हुआ है वहीं अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संभावनाओं के द्वार भी खुल रहें हैं।
हिंदी के साहित्यिक और सृजनात्मक अभिव्यक्ति का एक नया आयाम उसके अंतरराष्ट्रीय पक्ष के साथ भी जुड़ता है। डॉ. शिव गोपाल मिश्र का कथन है कि “विश्व भाषा का अर्थ है विश्व की अन्य भाषाओं के समकक्ष होना, उन्हीं जैसे साहित्य का सृजन और विश्वभर में भाषा के द्वारा वृतिक या व्यवसायिक अवसर उत्पन्न करना।”4 विश्व के अनेक देशों में हिंदी के माध्यम से कविता कहानी, उपन्यास, आलोचना तथा अन्य विधाओं में साहित्य सृजन काफी मात्रा में हो रहा है। इस साहित्य में विभिन्न देशों की मातृभूमि की गंध, वहां की जीवन शैली और वहां के लोकोक्तियों का सौंदर्य प्रचुर मात्रा में मिलता है। इनकी हिंदी की व्याकरण रचना की प्रकृति चाहे भारत की हिंदी के समान है किंतु उसकी बनावट में विभिन्न देशों की सामाजिक एवं सांस्कृतिक चेतना की छाप दिखाएं देती है। कृष्ण कुमार का कथन है कि “आज यह आवश्यक हो गया है कि इन देशों में रचित हिंदी साहित्य को इतिहास लेखन और आलोचनात्मक मूल्यांकन में स्थान दिया जाए तभी हिंदी साहित्य सही अर्थों में अंतरराष्ट्रीय साहित्य का रूप ले पाएगा।”5 हिंदी विद्वानों और हिंदी साहित्यिक प्रतिभा को विश्व के सामने लाने के लिए प्रयास करने चाहिए।
हिंदी भाषा अनेक देशों की समाज एवं संस्कृति के अंग के रूप में जुड़ी है। प्रवासी भारतीयों में हिंदी के ऐतिहासिक संबंधों की सामाजिक, सांस्कृतिक कड़ी और उनकी भावात्मक एकता का मूल आधार माना जाता है। प्रत्येक समाज में शादी-विवाह हो या तीज-त्यौहार आदि में अपनी भाषा की आवश्यकता पड़ती है, न किसी विदेशी या अन्य भाषा की भारत में जिस प्रकार धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठानों में संस्कृत भाषा का प्रयोग होता है। उसी प्रकार भारतीय मूल के देशों में और प्रवासी भारतीयों में संस्कृत भाषा का व्यवहार होता है किंतु जनभाषा भाषा के रूप में हिंदी का ही प्रयोग होता है। इस प्रकार हिंदी हिंदू धर्म और संस्कृति का अंग बनकर सामाजिक, सांस्कृतिक अस्मिता का प्रतीक बनकर उभरी है।
निष्कर्ष
विश्व में हिंदी बोलनेवालों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है तथा अनेक विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा पढ़ाई जा रही है। हिंदी भाषा को समृद्ध बनाने में भी प्रवासी भारतीयों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। हिंदी भाषा जनसंचार के अनेक माध्यमों में प्रयुक्त होती है, जिससे हिंदी भाषा प्रचार-प्रसार में वृद्धि हो रही है। विज्ञापन जगत में तो हिंदी भाषा अधिक बोली जा रही है। हिंदी भाषा का साहित्य वैश्विक परिदृश्य में दिखाई दे रहा है। अन्य देशों का साहित्य हिंदी भाषा में अनुवादित हो रहा है। हिंदी बोलनेवालों की तादाद दुनिया में दूसरे स्थान पर है लेकिन हिंदी का विकास तेजी के साथ हो रहा है, इसमें कोई दो राय नहीं है।
संदर्भ ग्रंथ
- डॉ. बालशौरि रेड्डी, समसामयिक हिंदी साहित्य : विविध आयाम, शांति प्रकाशन, प्र. सं. 2012, पृ. 44
- वही, पृ. 122
- संपा. लक्ष्मीकांत वर्मा, हिंदी-आंदोलन, हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग, प्र. सं. 1964, पृ.34
- डॉ. बालशौरि रेड्डी, समसामयिक हिंदी साहित्य : विविध आयाम, शांति प्रकाशन, प्र. सं. 2012, पृ. 114
- वही, पृ. 17
Last Updated on December 5, 2020 by srijanaustralia