कभी मेरे नयनों में सपने की तरह,
अब जीवन नैया के हो पतवार की तरह,
माथे पे बिन्दी लगा ली तेरे नाम की,
कभी मेरे गाँव आये एक पाहुन की तरह।1।
मेरे घर से होती गली में तेरा नाम लिखा है,
जो बीते हो गई,मील के पत्थर की तरह,
तेरे नाम की जो माल पहन आई घर में ,
छोड दी लाॅकर में, जानके जंजाल की तरह।2।
सजाने के लिए कुछ भी न पास मेरे,
दिल दे दिया अब तुम्हे अलंकार की तरह,
छलिया होके पाहुन, बन न आना कभी,
नहीँ तो गले पडूंगी, बस तुलसी की तरह।3।
Last Updated on January 4, 2021 by opgupta.kdl
- ओमप्रकाश गुप्ता
- अवकाश प्राप्त प्रवक्ता गणित
- बैलाडिला
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