कविता
मै आज भी आजाद नही हूँ किन्तु ,
वक्त की आँखों में आँखे डाल कर,
आज भी मुझे आँकते हैं लोग |
मैं देवी हूँ या परिणीता यह भाँपते हैं लोग ||
दरवाजे से आज भी लौट जाती है बारात मेरी |
बेरहम वक्त की बदकिस्मती की तस्वीर मानते हैं लोग ||
टूकड़े -टूकड़े कर मेरे शरीर की नुमाईश के वक्त |
मेरे ही मजार पर बैठ जिंदा मुझे मानते हैं लोग ||
बरसों बीते आज तक मेरी सूरतेहाल नही बदले |
जहरीली मुस्कुराहट के आगोश में ले मुझे
मेरी अर्चना को अक्सर विश्वासघात मानते हैं लोग ||
डॉ कविता यादव
बड़ौदा गुजरात
Last Updated on January 20, 2021 by drkavitayadav42