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डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

सृजन ऑस्ट्रेलिया | SRIJAN AUSTRALIA

6 मैपलटन वे, टारनेट, विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया से प्रकाशित, विशेषज्ञों द्वारा समीक्षित, बहुविषयक अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिका

A Multidisciplinary Peer Reviewed International E-Journal Published from 6 Mapleton Way, Tarneit, Victoria, Australia

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला

सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

निजाम फतेहपुरी की गज़लें

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1.

ग़ज़ल- 122 122 122 122
अरकान- फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
ग़ज़ल नक्ल हो अच्छी आदत नहीं है।
कहे खुद की सब में ये ताकत नहीं है।।
है  आसान  इतना  नहीं  शेर  कहना।
हुनर है क़लम  का  सियासत नहीं है।।
नहीं  छपते  दीवान  ग़ज़लें  चुराकर।
अगर पास खुद की लियाक़त नहीं है।।
हिलाता  है  दरबार  में  दुम जो यारों।
कहे सच  ये  उसमें  सदाक़त  नहीं है।।
जो डरता  नहीं  है  सुख़नवर वही है।
सही  बात  कहना  बगावत  नहीं  है।।
सभी खुश  रहें  बस  यही  चाहता हूँ।
हमारी  किसी  से  अदावत  नहीं  है।।
दबाया है झूठों  ने  सच इस कदर से।
कि सच भी ये सचमें सलामत नहीं है।।
दरिंदे भी  अब  रहनुमा  बन  रहे  हैं।
ये अच्छे दिनों  की  अलामत नहीं है।।
निज़ाम आज बिगड़ा है ऐसा जहाँ मे।
किसी की भी जाँ की हिफाजत नहीं है।।
2.
ग़ज़ल- 212  212  212  212
अरकान- फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
ज़िंदगी इक सफ़र  है नहीं और कुछ।
मौत के डर से डर  है नहीं और कुछ।।
तेरी दौलत महल  तेरा  धोका है सब।
क़ब्र ही असली घर है नहीं और कुछ।।
प्यार  से  प्यार  है   प्यार  ही  बंदगी।
प्यार से बढ़के ज़र है नहीं और कुछ।।
नफ़रतों से हुआ कुछ न हासिल कभी।
ग़म इधर जो उधर है नहीं और कुछ।।
झूठ सच तो नहीं फिर भी लगता है सच।
झूठ भी इक हुनर  है नहीं और कुछ।।
घटना घटती यहाँ जो वो छपती कहाँ।
सिर्फ झूठी ख़बर  है  नहीं और कुछ।।
बोलते सच जो थे क्यों वो ख़ामोश हैं।
ख़ौफ़ का ये असर है नहीं और कुछ।।
क्या है अरकान ये फ़ाइलुन फ़ाइलुन।
इस ग़ज़ल की बहर है नहीं और कुछ।।
जो भी जाहिल को फ़ाज़िल कहेगा ‘निज़ाम’।
अब उसी की बसर है नहीं और कुछ।।
3.
ग़ज़ल-  2122  2122  2122  212
अरकान- फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
ग़म मिटाने की  दवा  सुनते  हैं  मयख़ाने में है।
आओ चल कर देख लें क्या चीज़ पैमाने में है।।
हुस्न की शम्मा का चक्कर सब लगाते हैं मगर।
जान दे देने  कि  हिम्मत  सिर्फ  परवाने  में है।।
मय कदे में कौन सुनता है किसी की बात को।
हर कोई मशग़ूल  इक दूजे को समझाने में है।।
चार दिन जीना  मगर  जीना  जहाँ में शान से।
सौ बरस ज़िल्लत से जीना अच्छा मर जाने में है।।
एक मयकश से जो पूँछा किस लिए पीते हो तुम।
हंस के बोला पी के देखो दम तो अजमाने में है।।
हम तो बरसों से खड़े बस इक झलक को ऐ सनम।
आपको इतना तकल्लुफ़  बाम पर आने में है।।
एक दिन साक़ी की महफ़िल में गया जब ये निज़ाम।
पी गया बोतल सभी क्या  मौज पी जाने में है।।
4.
ग़ज़ल- 221 2121 1221 212
अरकान- मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन
शिकवा गिला मिटाने का त्योहार आ गया।
दुश्मन भी होलि खेलने  को यार आ गया।।
परदेसी  सारे  आ  गए  परदेस  से  यहाँ।
अपना भी मुझको रंगने मेरे द्वार आ गया।।
रंग्गे गुलाल  उड़  रहा  था  चारों  ओर  से।
नफ़रत मिटा के देखा तो बस प्यार आ गया।।
ठंडाइ भांग की मिलि हमनें जो पी लिया।
बैठा था घर में चैन  से  बाज़ार आ गया।।
मजनू पड़े हैं  पीछे  मुझे  रंगने  के  लिए।
धोखा हुआ पहन के जो सलवार आ गया।।
सब लोग मिल रहे गले  इक दूजे से यहाँ।
लगता है मुरली वाले के दरबार आ गया।।
खेलो निज़ाम रंग  भुला कर के सारे ग़म।
सबको गले लगाने  ये  दिलदार आ गया।।
5.
ग़ज़ल- 212  212  212  212
अरकान- फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
ज़िंदगी इक सफ़र  है नहीं और कुछ।
मौत के डर से डर  है नहीं और कुछ।।
तेरी दौलत महल  तेरा  धोका है सब।
क़ब्र ही असली घर है नहीं और कुछ।।
प्यार  से  प्यार  है   प्यार  ही  बंदगी।
प्यार से बढ़के ज़र है नहीं और कुछ।।
नफ़रतों से हुआ कुछ न हासिल कभी।
ग़म इधर जो उधर है नहीं और कुछ।।
झूठ सच तो नहीं फिर भी लगता है सच।
झूठ भी इक हुनर  है नहीं और कुछ।।
घटना घटती यहाँ जो वो छपती कहाँ।
सिर्फ झूठी ख़बर  है  नहीं और कुछ।।
बोलते सच जो थे क्यों वो ख़ामोश हैं।
ख़ौफ़ का ये असर है नहीं और कुछ।।
क्या है अरकान ये फ़ाइलुन फ़ाइलुन।
इस ग़ज़ल की बहर है नहीं और कुछ।।
जो भी जाहिल को फ़ाज़िल कहेगा ‘निज़ाम’।
अब उसी की बसर है नहीं और कुछ।।
6.
ग़ज़ल- 221 2121 1221 212
अरकान- मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन
शिकवा गिला मिटाने का त्योहार आ गया।
दुश्मन भी होलि खेलने  को यार आ गया।।
परदेसी  सारे  आ  गए  परदेस  से  यहाँ।
अपना भी मुझको रंगने मेरे द्वार आ गया।।
रंग्गे गुलाल  उड़  रहा  था  चारों  ओर  से।
नफ़रत मिटा के देखा तो बस प्यार आ गया।।
ठंडाइ भांग की मिलि हमनें जो पी लिया।
बैठा था घर में चैन  से  बाज़ार आ गया।।
मजनू पड़े हैं  पीछे  मुझे  रंगने  के  लिए।
धोखा हुआ पहन के जो सलवार आ गया।।
सब लोग मिल रहे गले  इक दूजे से यहाँ।
लगता है मुरली वाले के दरबार आ गया।।
खेलो निज़ाम रंग  भुला कर के सारे ग़म।
सबको गले लगाने  ये  दिलदार आ गया।।
7.
ग़ज़ल- 221 2121 1221 212
अरकान-मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन
ग़ज़ल-
खेलन को होली आज  तेरे  द्वार आया हूँ।
खाकर के गोला भांग का मैं यार आया हूँ।।
मानो बुरा  न  यार  है  त्यौहार  होली का।
खुशियाँ मनाने अपने मैं परिवार आया हूँ।।
छुप कर कहाँ है बैठा  जरा सामने तो आ।
पहले भी रंगने तुझको मैं हर बार आया हूँ।।
महफिल सजी है फाग की मदहोश हैं सभी।
शोभन में पाने प्यार  मैं  सरकार आया हूँ।।
होली  निज़ाम  खेल के  मस्ती में मस्त है।
कुछ तो करो  कृपा  तेरे  दरबार आया हूँ।।
8.
ग़ज़ल – 221 2121 1221 212
अरकान-मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन
ग़ज़ल-
खेलन को होली आज  तेरे  द्वार आया हूँ।
खाकर के गोला भांग का मैं यार आया हूँ।।
मानो बुरा  न  यार  है  त्यौहार  होली का।
खुशियाँ मनाने अपने मैं परिवार आया हूँ।।
छिपकर कहाँ है बैठा  जरा सामने तो आ।
पहले भी रंगने तुझको मैं हर बार आया हूँ।।
चौखट पे तेरे आज भी रौनक है फाग की।
शोभन में पाने प्यार  मैं  सरकार आया हूँ।।
होली  निज़ाम  खेल के  मस्ती में मस्त है।
कुछ तो करो  कृपा  तेरे  दरबार आया हूँ।।
9.
ग़ज़ल- 122 122 122 12
अरकान- फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊ
मैं शायर हुँ दिल का जलाया हुआ।
किसी  नाज़नीं  का  सताया  हुआ।।
वो बचपन के दिन भी थे कितने हंसी।
था  बाहों  में  कोई  समाया  हुआ।।
है पहचान भी अब  मेरी कुछ नहीं।
हरफ़ हूँ ग़लत  इक  मिटाया हुआ।।
कभी भूल से  जो  लिखा था गया।
अभी तक है आँखों में छाया हुआ।।
हुए   ग़ैर   वो   ग़ैर   अपने   हुए।
अंधेरे  में   साथी   न  सया  हुआ।।
नहीं मिलने  देता  कोई  अब हमे।
जमाने  ने  है  ज़ुल्म  ढाया  हुआ।।
जो था कमसिनी में तेरा ऐ निज़ाम।
जवानी  में  आकर  पराया  हुआ।।
संपर्क : निज़ाम-फतेहपुरी, ग्राम व पोस्ट मदोकीपुर, ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश), मो. : 6394332921

Last Updated on May 4, 2021 by srijanaustralia

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