हे मेघ…! हृदय के भाव सुनो…!!
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निर्जन वन के पुनर्सृजन को,
हे मेघ…! घुमड़ के आ जाओ,
मन की दुर्बलता पर सघन वृष्टि,
बादल बन कर तुम छा जाओ…!
विश्वास विकल दुर्बल हृदय,
इस एकांत और सूनेपन में,
हे मेघ…! प्रबल गर्जन लिए,
सुप्त हृदय को जगा जाओ…!
भावहीन बंजर सा मन,
हर क्षण दुविधा के पाश में,
हे मेघ…! सुमन वर्षण लिए,
जीवन को महका जाओ…!
अडिग अचल निष्ठुर शरीर,
प्रिय के अभाव में श्वास हीन,
हे मेघ…! वायु सा वेग लिए,
प्राण वायु बरसा जाओ…!
संगीत हीन अब हृदय मेरा,
ना राग का अब अनुराग बचा,
कल कल ध्वनि अब लिए मेघ,
मल्हार राग तुम बन जाओ…!
हृदय मध्य के प्रेम भाव,
अदृश्य बांध से बंधे हुए,
हे मेघ…! घोर वर्षा ले कर,
तुम एक प्रवाह सा दे जाओ…!
प्रिय बिन सम्पूर्ण नहीं “ऋषि”,
व्याकुल मन के कुछ भाव सुनो,
हे मेघ…! प्रेम के पथ पर अब,
इक सरस राह तुम बन जाओ…!!
सादर🙏🙏
Last Updated on January 22, 2021 by rtiwari02