कैसा स्वभाव है मानव का,
सब चाह करे बस फूलों की…!
शाखों का मान करे कोई क्यूं,
अस्तित्व भला क्या शूलों की…!!
सोचो बिन शाखों कांटों के,
ये सुमन भला कैसे जीते…!
मन के अंदर चुभने का भय,
कांटों के बीच वो क्यूं होते…!!
किसने सिखलाई रीत अरे,
फूलों को चुन अपनाने की…!
कांटों की राह कठिन बतला,
खुद के मन को झुठलाने की…!!
पुष्प सजी राहों पर चल,
किसने है मंजिल पाई…!
कांटों के ताज़ हो जिसके सर,
वो राम बना…प्रभूताई पाई…!!
जो भरत उलझते वैभव सुख में,
आदर्श भला क्या बन पाते…?
जो लखन ना चुनते राह वनों की…
अमर कथानक कहलाते…??
है सार कठिन अंतर्द्वंदों का,
कैसे मन को प्रत्युत्तर दूं…?
सुमन शूल में श्रेष्ठ कौन…?
कैसे इस प्रश्न का उत्तर दूं…??
कांटें हैं राह तपस्या की,
और पुष्प तपस्या का प्रतिफल…!
बिन राह चले तप पूर्ण नहीं,
जीवन के निश्चय हों असफल…!!
बस सुमन प्रेम में नहीं “ऋषि”,
हो शूल भी कुछ मेरे पथ में…!
शाखों को आदर्श समझ,
हो पुष्प भी कुछ जीवन रथ में…!!
सादर।
Last Updated on January 22, 2021 by rtiwari02