- दोहे ,,,
- 1,,,
- इच्छाएं घर से चलीं,कर सोलह श्रृंगार।।
- लौटी हैं बेआबरू, हो घायल हर बार।।
- 2,,,
- आंधी से अनुबंध कर, चुप हैं पीपल आम।।
- पौधों को सहना पड़े,इस छल के परिणाम।।
- 3,,,,
- विपदा बस जब कृषक ने,बेचा अपना खेत।।
- मिट्टी रोई फूटकर, मैंडैं हुईं अचेत।।
- 4,,,,
- रस्ता है कांटो भरा, हम हैं नंगे पांव।।
- आंखों पर पट्टी बँधी, बहुत दूर है गांव।।
- 5,,
- मृगतृष्णा सी जिंदगी, जिसमें भटके लोग।।
- जीवन जल संदर्भ है,इक अनुपम संयोग।।
- 6,,,
- होंठों पर ताले लगे, पैरों में जंजीर।।
- उसपर भी हम ढो रहे, पर्वत जैसी पीर।।
- 7,,,
- उस जंगल सी जिंदगी, कैसे करें कबूल।।
- जिसमें बट पीपल नहीं,उगते सिर्फ बबूल।।
बृंदावन राय सरल सागर एमपी।
वरिष्ठ कवि एवं शायर सागर मप्र।
मोब,,,7869218525
Last Updated on January 15, 2021 by bindravnrais