जन्म और मृत्यु,
जीवन के दो छोर
एक है प्रारंभ तो दूजा अंत
इस मध्य ही है जीवन का सार।
क्या खोया क्या पाया
क्या छोड़ा क्या अपनाया
क्या भोगा क्या त्याग दिया
बस यही है जीवन की माया।
जब जीवन बीत जाती है
मौत का साया जब मंडराती है
जीवन की सांझ जब ढलने को आती है
तब गुजरा वक्त यादें बनकर आती है।
दो पल खातिर जब सासें रुकने को आती है
जीवन भर की कमाई भी
एक क्षण की सांस भी खरीद नही पाती है
जीवन की सारी घटनाएं जब
क्षण भर में नजरो से गुजर जाती है
जीवन का मोल तब समझ में आती है।
तब कर्मो का सारा लेखा जोखा
खुद ही समझ मे आने लगती है
क्या करना था और क्या किया
मन मस्तिष्क में घुमड़ने लगती है
क्या सही था और क्या गलत
सारी बाते बिल्कुल साफ नजर आने लगती है।
तब लगता है थोड़ा और समय मिल जाता
सारी गलती और भूल सुधार देता
पर तब तक बहुत देर हो जाता है
मृत्यु का पाश बस बंधने को रहता है
मस्तिष्क की क्षमता बिखरने को रहती है
काया की ऊर्जा भी खत्म होने को आती है
तब केवल पश्चाताप और संताप ही रह जाता है
और देखते देखते मौत अपने आगोश में समा लेता है।
Last Updated on January 24, 2021 by sheetal.phy14