प्रेम का रंग चढ़ रहा है
धीरे-धीरे बसंत आ रहा है
कोयल कूक ने वाली है
संंग हम सब नर-नारी है
जोर जोर से बोलने की
सब कर लिए तैयारी है
तन का मन भंग हो रहा है
प्रेम का रंग चढ़ रहा है
धीरे-धीरे बसंत आ रहा है
भंवरों की गुनगुन में
संगीत लहेरिया मार रही है
फूल की कलियों को खिलते देेख
एहसास हो रहा है मधुपर्क का
छोड़ दो उसे सपने में आज
जो होनेवाले है साकार
प्रेम का रंग चढ़ रहा है
धीरे-धीरे बसंत आ रहा है
नज़रों से कह दो प्यार में
मिलने का मौसम आ रहा है
कंधे पर बांहें डाले
चले जा रहे हैंं अभिसार करने वाले
प्रेेम का रंग चढ़ रहा है
धीरे-धीरे बसंत आ रहा है।
ढोल मजीरा और भांग गुलाल
कृष्ण का रेेेला और फगुआ का मेला
सुबह का बेला और गोपियों का सेना
राधा की गली ओर बड़़े जा रहे हैं।
प्रेेम का रंग चढ़ रहा है
धीरे-धीरे बसंत आ रहा है। ये
Last Updated on January 13, 2021 by abhijeetbhu17