मै हू एक नारी
सबला होकर भी
क्यों पुकारते है अबला
हर वक्त हर कदम ये सवाल रहता
साये की तरह पीछे
सोच सोच कर हार जाती हू
जवाब ढूड नहीं पाने पर
फिर सोचती हू की –
सचमूच कही मै अबला तो नहीं
युग युग बीत गए
क्या पहले भी कभी नारी ने
नहीं किए क्या कार्य बड़े
लेकिन हाय |
ये दुनिया जालिम है
जाकर भूल नारी को
रखते याद पुरुषों को क्योंकि –
हर वक्त उन्हे रहता है अहसास
एक पुरुषत्व का
लेकिन –
आज समय बदल गया है
नारी ने खुद को संभलकर
बना ली है
अपनी अलग पहचान
पढ़ लिख कर
पा लिया स्थान बराबर
फिर भी –
आज इस देश के किसी कोने मे
बहु – बेटियों पर
होते है अत्याचार
खुद अन्याय सहकर खुद काटों पर चलकर
देती है फूल औरों को
और खुद भोगती है सजा देती है फूल औरों को
और खुद भोगती है सजा
इस जालिम दुनिया मे आने की
क्योंकि – इसी का नाम तो अबला है ..
डॉ शारदा बलिराम राऊत
( के के एम महाविद्यालय ,मानवत परभणी )
बासुरी निवास रचना कॉलनी ,मानवत
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mo. 9422744601
Last Updated on January 11, 2021 by shardaharkal72