1)घुंगरुओं की वेदना
नहीं मन।
रुक जाओ।
यह नृत्य नहीं,विवशता है
जो–
धक्का लगाकर
गिराती है नर्क में
और फिर–
पटक वाती है उसके पांव
ज़मीन पर और-
मोद में डूबे तुम
इसे नृत्य कहते हो मन,
मत खो जाना
इन घुंघरुओं की रुनझुन में
यह रुनझुन नहीं,सिसकियां हैं
जो-
गुथ गई है
उसके घुंघरुओं में,
नहीं यह बालों में
खिला फूल नहीं,उसके अपने जीवन का प्रतीक है,
प्रतीक भी वेपृत्य का
जो सदैव उसके खिलने से पहले
कुचल दिए जाने का
अहसास कराता है।
मन।
यह मनोरम,मनभावन श्रृंगार नहीं,यह है–
समाज की नंगी अंगुलियों से बचने का
एक सशक्त किन्तु
झूठा आवरण।
टेबल पर दोनों हाथों से तेज़ी से पड़ने वाली थाप
जिसमे तबला केवल एक साधन है
और यही थाप
पड़ती है उसके मन पर
जिसे–
घुंगरुओ,गजरे, तबले के बीच
मन,तुम नहीं देख पा रहे।
मन,
वह पान की गिलोरी नहीं
है–
किसी का वजूद
जिसे चबाकर
वे थूकते भी हैं
सड़कों पर और
हर राही
कुचल जाता है उस कुचले
वजूद को पुनः
प्रारंभिक क्रिया के समान
वह कुचला वजूद अंततः
सिसकियां भरते हुए
नृत्य गत हो जाता है।
मन,
यदि तुम जाओ
घुंग्रुओं की रुनझुन सुनने तो
सहलाना,थपथपाना
उस टेबल को,जो
चोट खाता है थाप की
हर क्षण प्रतिपल
दुलारना उसे,उसकी वेदना में
समा जाना।वेदना में साथ
पाकर तुम्हे वह बांटेगा
अपनी पीड़ा तुम्हारे साथ।
हल्का होगा उसका दर्द
और–
उसका हल्कापन
तुम्हारे भारीपन,
तुम्हारी सबलता
तुम्हारी सशक्त ता का
परिचायक होगा।
मन,
में तुम्हारे इस परिचय की
प्रतीक्षा में हूं।
**Please note its तबले instead of table
2)स्त्री
स्त्री चाहती है,पुरुष की गठीली भुजाओं का आवरण
जब उसकी भुजाओं में कसमसाया स्त्री
वो मुक्त कर दे उसे,
क्यों और कैसे की परिधि में
ना बांधे स्त्री को
उन्मुक्त कर दे उसके पर
ताकि वो हर्ष से लौटे अपने घरोंदे में,
जीवन की सुगंध को समेटे हुए।
स्त्री नहीं चाहती अपने अस्तित्व पर प्रश्न,
एकाकार हो जाना चाहती है,
उसके अस्तित्व में।
पिघल जाना चाहती है उसकी बांहों में,
पर,स्त्री नहीं चाहती पुरुष की ढाल।
स्त्री देवी नहीं होना चाहती।
ना कामना उसे पुरुष के देवता हो जाने की।
स्त्री पुरुष का पहला नहीं,
अन्तिम प्रेम होना चाहती है।
स्त्री सजा लेती है,पुरुष के स्वेद कनो से
अपनी गृहस्थी की बगिया।
उसके आंगन से बुहारकर
अपनी इच्छाएं।
उसके तुलसी दल में चढ़ाकर अपने
सपनों का जल।
उसके घर की खूंटी पर टांग कर
अपनी आकांक्षाओं की चूनर।
पुरुष के खनखनाते सिक्कों में,
स्त्री नहीं चाहती अहंकार की ध्वनि।
अपनी आंखों में उग आए सपनों की चमक,
स्त्री देखना चाहती है पुरुष की आंखों में।
स्त्री के सौंदर्य के खांचे में,
पुरुष की सूरत नहीं, सीरत होती है।
देह के संघर्ष में स्त्री हार जीत नहीं ,चाहती है पुरुष का स्नेही,उदार स्पर्श,
इसी स्नेह और उदारता को,
बीज रूप में सहेज लेती है स्त्री।
वन्यता से ऊपर उठे पुरुष के प्रति
पालतू हो जाने में भी,
गर्वोन्नत शीश और चमकते ललाट पर सिंदूरी आभा में दमकती है स्त्री।
जब नहीं होता ऐसा,तो स्त्री करती है,हर रोज़
अपना श्राद्ध स्वयं।मान्यता है- श्राद्ध से मुक्ति मिलती है
पर क्या स्त्री को भी?…….
Last Updated on January 20, 2021 by dr.savitajemini
45 thoughts on “महिला दिवस कविता प्रतियोगिता”
Amazing poem
Great poem the way you describe the words it was amazing
Beautiful poem keep it up mam
Nice poem mam
Nice poem great work
Excellent !!
Amazing
Expressing emotions by the means of words is an art, and you are an artist.
Amazing poem
Mesmerizing.. 🙏❤️
#Awesome poem (the pen is mightier than the sword)
Beautiful poem, deeply expressed the true sense of a women’s feelings, life, reality which is rough but true circumstances of one’s life.
It’s really awesome . very deep sense
Very nice poem
Heart touched feelings
Very painful but very beautifully expressed.
Loved it.
Beautiful poem keep it up mam
Very Nice 👍🏻
पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री की इच्छाओं और आकांक्षाओं को सूक्ष्मता से अर्थ गांभीर्य के साथ प्रस्तुत करती कविताएं।जहां साहचय के साथ सह अस्तित्व,प्रेम,सम्मान की मानवीय मंह भी है।
कवयित्री को साधुवाद।
Nice poem mam
Nice poem mam…mst jhkassss
Beautiful poems mam.
Stri ki anubhubhuti ko abhivyakti deti bahut hi marmik Kavita
This is really amazing…❤
Osm poem mam is poem se hume sikh milti h
Excellent
Very nice poem ma’am❤
Very nice poem
Deep poem
Nice poem mam 👏👍
Amazing poem
The poem with very deep meaning
स्त्री मन को अभिव्यक्त करती सशक्त कविताएं। पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री की इच्छाओं और सपनों को आकार देती दोनों कविताएं स्त्री मुक्ति की कामना के साथ साहचर्य, सह-अस्तित्व, प्रेम और सम्मान की मानवीय मांग करती हैं। साथ ही, स्त्री जीवन के जटिल यथार्थ को इतनी सूक्ष्मता और अर्थ गांभीर्य के साथ प्रस्तुत करने के लिए कवयित्री को साधुवाद।
यह सच में दिल को छूने वाली कविता है, हर एक पंक्ति में एक गहरा भाव छुपा है इसे पढ़कर कोई भी इस कविता को महसूस कर सकता है! कविता में शब्द का उपयोग, यह शानदार है ! बहुत बढ़िया , शानदार मैम, मुझे यकीन है कि, पढ़ने के बाद सभी को यह पसंद आएगा!
Osm poem mam is poem se hume sikh milti h
स्त्री मन को अभिव्यक्त करती सशक्त कविताएं। पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री की इच्छाओं और सपनों को आकार देती ये कविताएं स्त्री मुक्ति की कामना के साथ साहचर्य, सह-अस्तित्व, प्रेम और सम्मान की मानवीय मांग करती हैं। स्त्री जीवन के जटिल यथार्थ को इतनी सूक्ष्मता और अर्थ गांभीर्य के साथ प्रस्तुत करने के लिए कवयित्री को साधुवाद।
Heart touching poem 😍😍🥰
Really love this amazing😍😍😍 I want to meet you mam once in my life ☺☺☺
नारी मन की जटिलता का सूक्ष्म चित्रण
गहरी वेदना को व्यक्त करती कविताएं।
प्रेम,सहयोग और सच्चे समर्पण की चाह को दर्शाती कविताएं।
में को छू लेने वाली संवेदना।
नारी मन में झांकती कविताएं।प्रेम,समर्पण,विश्वास और स्त्री पुरुष के अर्धनारीश्वर रूप को समर्थन देती कविताएं।
स्त्री की कोमल भावनाओं को शब्दों में चित्रित करती कविताएं।
कवयित्री का में कितना शुद्ध,कोमल और प्रेम से भरा है,शब्दों की निश्चलता कवयित्री के निष्कपट मन का दर्पण है।
साधुवाद।
prashansniya 👌👌👏🏻👏🏻
Amazing poem loved it..
Nice poem well done mam 🤗👌
Amazing poem beautifully written..
Beautiful poem
Superbbb… Loved it..
Nicely written